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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मैं उसके स्नेहका क्या करूँ? भड़ौंचके लोग मुझसे प्रेम भले ही न करें, किन्तु वे मेरे ऊपर सूत फेंकते रहें, चाहे वे रोषमें ऐसा करें या यह मानकर कि मैं पागल हूँ और मुझे सन्तोष देना चाहिए इसलिए थोड़ा सूत कात कर फेंकें, तो भी मुझे सन्तोष होगा। मैं सूत-सूत इसलिए रट रहा हूँ कि उससे जो पैसा आता है वह नरकंकालोंको मिलता है। वह पैसा जिनके पास मैनचेस्टर, बम्बई और अहमदाबादके शेयर हैं, उनको नहीं मिलेगा। उनको मेरी जरूरत नहीं है, नरकंकालोंको है।[१]...

यह कहनेके बाद उन्होंने जगन्नाथपुरीके उन नरकंकालोंकी दयनीय दशा जिसकी चर्चा वे पहले भी कई बार कर चुके है, उल्लेख किया और कहा:

चरखा हमारी आर्थिक उन्नतिकी नींव है। उसका केन्द्र है। आज तो हम अपनी साख खो बैठे हैं; इसलिए हमें लोगोंकी अनन्य सेवा करनी चाहिए। मैं इसीलिए गाँव-गाँव जाता हूँ। मुझे चरखेकी बात चाहे जहाँ करनेमें न तो लज्जा आती है और न मेरा उस परसे विश्वास ही कम होता है। मेरी श्रद्धा तो दिन-प्रतिदिन गहरी ही होती जाती है। मैंने कताई सदस्यता भी इसी उद्देश्यसे सुझाई थी। आज यदि सूत न कातनेवाले मनुष्य कांग्रेसमें नहीं आते तो इससे कांग्रेसका जहाज डूब नहीं जायेगा। उसमें भले ही पाँच या दस हजार लोग आयें, उनके द्वारा देशकी आर्थिक समस्याका हल निकल सकता है; किन्तु जिन्हें देशकी आर्थिक स्थितिकी परवाह नहीं है, ऐसे करोड़ों लोगोंका भी मेरे लिए कोई उपयोग नहीं है। मेरे लेखे ऐसे लोग बेकार हैं।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २६-४-१९२५

२९२. टिप्पणियाँ

भूल सुधार

मैंने श्री देवचन्दभाई पारेखकी लड़कीके विवाहके सम्बन्धमें लिखते हुए कहा था [२] कि केवल भाई त्रीकमलाल ही बारातमें गये थे। लेकिन उन्होंने मुझे सूचित किया है कि वे बारातमें अपने साथ अपनी जातीय प्रथाके अनुसार, अर्थात् पच्चीससे अधिक लोगोंको ले गये थे। यह जानकर मुझे दुःख हुआ। उन्हें भी मेरी भूल सुधारते हुए दुःख हुआ। लेकिन किसीको दु:ख हो या न हो, भूल तो भूल ही है और वह सुधारी ही जानी चाहिए। जो बात हुई ही नहीं, हम उसकी कल्पना करके कोई उदाहरण नहीं रख सकते। श्री त्रीकमलाल पच्चीस लोगोंको साथ न ले जाते, तो भी काम चलता। लेकिन उन्हें बहुत सारे सुधार करने के बाद इस सुधारको करने की हिम्मत नहीं हुई और इसीलिए वे इतनी बड़ी बारात लेकर गये। फिर भी, उन्होंने दृढ़ता-

१. मूलमें यहाँ कुछ छूटा हुआ है।

२. देखिए "टिप्पणियाँ", २९-३-१९२५ के अन्तर्गत उपशीर्षक "चार विवाह"।