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पूर्वक इस एक नियमका पालन तो किया ही कि किसी भी बारातीने कन्या-पक्षसे एक कौड़ी भी भेंट नहीं ली।

अन्त्यजोंकी कठिनाइयाँ

काठियावाड़के इस प्रवासमें मुझे अन्त्यजोंके कष्टोंका विशेष अनुभव हुआ। उन्हें गाँवोंमें कुओंसे पानी नहीं भरने दिया जाता। उन्हें पशुओंके हौदोंमें से पानी भरने की इजाजत है। उन्होंने बहुत-सी जगहोंमें मुझसे अपने इस कष्टके बारेमें शिकायत की। यह कष्ट कोई छोटा-मोटा कष्ट नहीं है। प्रत्येक गाँवमें उनके लिए अलग कुआँ बनवाया जाये यह लगभग असम्भव है। काठियावाड़की जमीन बहुत कड़ी है और वहाँ पानी बहुत गहराईतक खुदाई करनेपर मिलता है, इसलिए एक कुआँ बनवाने में तीन हजार रुपयेतक लग जाते हैं। इस हालतमें नये कुएँ कितने बनवाये जा सकते हैं? पानीपर सबका हक होता है। उससे भी अन्त्यजोंको वंचित रखना तिरस्कारकी पराकाष्ठा है। यदि लोग उनके स्पर्श होनसे अपनेको अपवित्र मानें तो वे उनके लिए पानी भरनेका अलग समय भले ही निश्चित कर दें। मैं नहीं समझ सकता कि ऐसी कठोरतामें धर्म कहाँ है?

अन्त्यजोंके दोष

जिस प्रकार मुझे इस यात्रामें अन्त्यजोंके प्रति निर्दयताका विशेष अनुभव हुआ उसी प्रकार अन्त्यजोंके दोषोंका भी कटु अनुभव हुआ। ढसा, हडाला और माँगरोलके अन्त्यजोंसे बात करनेपर मालूम हुआ कि वे मुर्दार मांस खाते हैं। इस मांसको वे धूल कहते हैं। मैंने उन्हें बहुत समझाया कि वे इस बुरी आदतको छोड़ दें, लेकिन उन्होंने जवाब दिया कि यह रिवाज बहुत दिनोंसे चला आता है और छोड़ा नहीं जा सकता। मैंने उन्हें बहुत समझाया, लेकिन वे टससे-मस न हुए। उन्होंने यह तो स्वीकार किया है कि उन्हें इसे छोड़ देना चाहिए, लेकिन हममें ऐसा करनेकी ताकत नहीं है, ऐसा कहकर वह चुप हो गये। हिन्दुओंको चाहे कितना ही समझाया जाये, किन्तु उनके मनमें से मुर्दार मांस खानेवालोंके प्रति घृणा और तिरस्कारका भाव निकाल पाना बहुत मुश्किल होगा। लोग उनकी इस बुरी आदतको सहन भले ही करलें, लेकिन वे उन्हें प्रेमसे गले न लगायेंगे। कैसी भी कठिनाई क्यों न हो, अन्त्यजोंको इस बुरी आदतको छोड़नेका भारी प्रयत्न करना ही चाहिए। उनको और उनके साधुओंको एक बड़ा आन्दोलन खड़ा करके चमार बिरादरीसे इस बहुत ही गन्दी आदतको छुड़वा देना चाहिए। एक अन्त्यजने अपनी कमजोरी बताई और कहा कि यदि हमसे मरे हुए ढोर ही न उठवाये जायें तो हम उनका मांस खाना छोड़ दें। मैंने कहा, "दरबार साहब यदि ऐसा नियम बना दें कि कोई चमार मरे हुए ढोरोंको न उठाये तो क्या आपको यह स्वीकार है?" वह तुरन्त बोला: "हाँ, हम लोगोंको यह स्वीकार है।"

"तब आप गुजारेके लिए क्या करेंगे?"

"कुछ भी करेंगे। कपड़ा बुनेंगे, लेकिन शिकायत लेकर आपके पास न आयेंगे।"