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दो आदमी ही बिना थकावट महसूस किये खींच सकते हैं। मैं सभीको यह सलाह देता हूँ कि अवसर आनेपर इस गाड़ीका उपयोग करें।

खादी बुननेवालोंसे

गुजरातमें बननेवाली खादीकी किस्म पिछले चार वर्षों में लगातार सुधरी है। लेकिन उसमें अब भी बहुत सुधारकी जरूरत है। उसका अर्ज बहुत छोटा होता है। जैसे-जैसे सूतकी किस्म सुधरे वैसे-वैसे खादीका अर्ज बढ़ना चाहिए। हमारा लक्ष्य यह है, और यही होना भी चाहिए कि हर प्रान्त अपनी जरूरत-भरके लिए हर किस्मका खद्दर स्वयं तैयार करे।

बाढ़ पीड़ितोंके सहायतार्थ चरखा

बाढ़के कारण जिन लोगोंको अपना सर्वस्व खोना पड़ा है, मलाबारमें उन्हें मदद देनेका काम आज भी चल रहा है। उसमें मेरी मार्फतसे जो पैसा भेजा गया उसके कुछ हिस्सेका उपयोग चरखके द्वारा मदद देने में किया जा रहा है। मलाबारकी औरतोंको इसकी जानकारी न होनेके कारण उन्हें सब सिखाना पड़ता है। पंजाबमें तो इससे उलटा हुआ है। वहाँ भी कुछ हिस्सोंमें बहुत नुकसान हुआ था। ऐसे लोगोंके लिए चरखा एक नियामत हो गया है। पहले-पहल तो उन्हें मददके तौरपर आटा दिया जाता था। लेकिन बादमें किसीको उन्हें चरखेके सहारे रोजगार देनेकी बात सूझी। प्रत्येक घरमें चरखा तो था ही। बहनें कातना भी जानती ही थीं। उन्हें बाजार-भावसे अधिक मजदूरी देनेका निर्णय हुआ। यह कार्य अब अच्छी तरह चल रहा है। ऐसा प्रतीत होता है कि यदि इसका इन्तजाम किसी चरखा-शास्त्र जाननेवालेके हाथमें होता तो आज जो नुकसान उठाना पड़ रहा है, वह न उठाना पड़ता। यदि खादीका उपयोग सभी करने लगें, तो पीड़ित लोगोंको चरखके द्वारा सहायता देनेका काम बहुत आसान हो जाये।

अखिल भारतीय गोरक्षा मण्डल

बम्बईमें २८ मईको, ८ बजे शामको एक सभा माधवबागमें होगी, जिसका हेतु इस मण्डलकी स्थापना करना है। इस विचारका जन्म कैसे हुआ, यह 'नवजीवन' के पाठकोंको मालूम है। मुझे उम्मीद है कि जिन लोगोंको गोरक्षा प्रिय है और जो इसे अपना धर्म मानते हैं, वे सब उस सभामें अवश्य उपस्थित होंगे। इसका उद्देश्य तो तभी पूरा होगा जब बहुत सारे गो-सेवक उसमें योगदान करेंगे। गोरक्षा हिन्दू धर्मका सर्वसामान्य रूप है। लेकिन गोरक्षा केवल इच्छा करनेसे ही नहीं हो जायेगी। वह तो तभी होगी जब इस विषयपर विचार करनेवाले हम लोग उचित उपाय करेंगे। इसलिए इस विषयपर विचार करने और तदनुसार कार्य-योजना करनेवाली एक संस्थाका होना ज़रूरी है। ऐसी संस्थाकी स्थापना के उद्देश्यसे ही यह सभा बुलाई गई है। आशा है, उसमें गो-सेवक बहुत बड़ी संख्यामें उपस्थित होंगे।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १९-४-१९२५