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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लोग कहते हैं बंगाली व्यवहार-कुशल नहीं होते। उन्हें चाहिए कि वे इस इल्जामको झूठा साबित कर दें। यदि कुशाग्र बुद्धि और कल्पना-शक्तिके साथ व्यवहार-कुशलताका संयोग हो जाये तो वे कुछ भी कर सकते हैं। भगवान् करे, बंगालमें यह संगम मुझे दिखाई दे। मैं उम्मीद करता हूँ कि बंगालमें हर जगह आँकड़ोंके सहित पूरी-पूरी जानकारी मिलेगी। अभिनन्दन-पत्रोंमें यदि मेरे गणगानकी अपेक्षा अपने जिले या कस्बेकी गतिविधियोंका सच्चा विवरण हो तो इससे मुझे कितनी जानकारी हो जायेगी! जैसे, हर अभिनन्दन-पत्रमें स्वयं कातनेवाले तथा अन्य सदस्योंकी संख्या बताई जा सकती है, कितने चरखे चालू हैं, हर चरखेपर औसतन कितना सूत काता जाता है, सूत कितने अंकका होता है, हर माह कितना सूत और खादी तैयार होती है, हाथकते तथा दूसरे सूतका कपड़ा बुननेवाले करघे कितने है, हर जगह कितने खादीभण्डार है और उनमें कितनी बिक्री होती है, आदि बातें लिखी जा सकती हैं। राष्ट्रीय पाठशालाओं तथा महाविद्यालयोंकी और उनमें पढ़नेवाले लड़के-लड़कियोंकी संख्या भी उसमें दर्ज की जा सकती है। अछूतोंमें क्या-क्या काम हो रहा है, संगठित रूपसे उनके बीच काम करनेके पहले उनकी हालत क्या थी और अब क्या है, इसका उल्लेख भी कर सकते हैं। उसमें हिन्दू-मुसलमानोंके सम्बन्धमें और शराब तथा अफीमका व्यापार कैसा है, इसका उल्लेख किया जा सकता है। यदि अब इन तमाम बातोंका समावेश अभिनन्दन-पत्रमें न किया जा सकता हो तो अच्छा होगा कि अलहदा कागजपर ही यह ब्यौरा मुझे दिया जाये। एक बात और कह दूँ। मुझे कीमती मंजूषा और फेममें जड़े हुए अभिनन्दन-पत्र न दिये जायें। यह ठीक नहीं है। यदि ये सिर्फ हाथसे बने कागज या एक खादीके टुकड़ेपर हाथसे लिखकर दे दिये जायें तो मुझे उससे ही सन्तोष हो जायेगा। बंगालको यह बतानेकी जरूरत नहीं कि उसपर बहुत रुपया खर्च किये बिना या उसे बहुत लम्बा-चौड़ा बनाये बिना भी अभिनन्दन-पत्र कलात्मक बनाया जा सकता है। त्रावणकोरमें कई जगह अभिनन्दन-पत्र छोटे कोमल ताड़पत्रोंपर लिखकर दिये गये थे। जैसे मैं भारतके हृदयतक पहुँचना चाहता हूँ, उसी तरह बंगालके हृदयतक भी पहुँचना चाहता हूँ और जहाँ दो हृदयोंमें सीधा सम्बन्ध हो वहाँ कीमती चीजें और सुन्दर शब्द सहायक होने के बजाय बाधक होते हैं। मैं कामोंका भूखा हूँ, शब्दोंका नहीं। भारी सोने या चाँदीकी चीजोंकी अपेक्षा ठोस खादी-कार्य मुझे अधिक प्रिय है।

सिखोंकी दुःख कथा

सिखोंके दुःखोंका अन्त अभी नहीं आया है। अमृतसरसे एक तार है:

शि० गु० प्र० समितिको दिल दहलानेवाली खबर मिली है कि १६ अप्रैलको नाभा कैम्प जेलमें दूसरे शहीदी जत्थेके लोग पीटे गये और उनके दाढ़ी और केश उखाड़ लिये गये। उन्हें इसलिए पीटा गया कि वे माफी नहीं माँग रहे हैं। दाढ़ी और सिरके उखाड़े गये केश भी समितिको मिले हैं। इस तरह पीटे जानेवाले ११४ लोग नाभामें हैं। उनका विवरण इस प्रकार है: सातकी