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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

ज्यादा है। दूसरा खादी पहननेके बारेमें और तीसरा औरतोंको पत्थरके गहने न पहनानेके विषयमें था। शराब न पीने और खादी पहननेके लिए जो प्रस्ताव हुए वे प्रतिज्ञाके रूपमें थे। लोगोंने बड़ी संजीदगीके साथ खुद शराब न पीने और नम्रताके साथ अपने पड़ोसियोंको भी ऐसा समझानेका उत्तरदायित्व स्वीकार किया। दूसरी प्रतिज्ञा खुद सूत कातने तथा हाथकती खादीके अलावा सभी किस्मके कपड़ेसे विमुख रहने एवं औरोंको भी ऐसा ही करनेके लिए समझानेकी ली गई। मैंने खास तौरपर कोशिश की कि वे उन तमाम बातोंका मतलब समझ लें जो उनसे कही जा रही थीं और जिनकी प्रतिज्ञा उनसे कराई जा रही थी। सभाके छोरोंपर बैठे हुए लोगोंके बीच स्वयंसेवक भेजकर यह दिलजमई करा ली जाती थी कि वे लोग सभाकी कार्रवाईको समझ रहे हैं या नहीं। हवाका रुख अनुकूल था। इससे आवाज उनतक बखूबी और आसानीसे पहुँच जाती थी। क्या स्त्री और क्या पुरुष दोनोंने ईश्वरको साक्षी रखकर शपथ ली। पाठक इस बातको जान लें कि वे दो वर्षोंसे ऐसे प्रस्ताव पास करते आ रहे हैं और लगभग सभी लोगोंके बदनपर कुछ-न-कुछ खादी अवश्य थी। उन्होंने तत्परतासे और समझ-बूझकर उसे अंगीकार किया है। सैकड़ों लोगोंने कातना सीख लिया है। कुछ युवकोंने तो बारडोली आश्रममें रहकर धुनना, कातना और बुनना सीखा है। इनमेंसे कुछ कपड़ा बुनकर अपनी रोजी भी कमा रहे हैं। उपस्थित श्रोतागण खादी और चरखेकी प्रतिज्ञाके लिए वास्तवमें उसी तरह तैयार थे जिस तरह नशीली चीजोंको छोड़नेकी प्रतिज्ञाके लिए।

मैंने ६० सालके एक बूढ़ेसे अच्छी तरह बातचीत की और यह जानना चाहा कि दिनभर खेतमें कड़ी मेहनत करनेके बाद वह चरखा क्यों चलाता है। वह रोज ४-५ घंटे सूत कातता है। वह सोता बहुत कम है इसलिए रातको भी कातता है और तड़के ही उठकर फिर चरखा लेकर बैठ जाता है। मैंने सोचा था कि वह मुझसे कहेगा कि मैं मन-बहलावके लिए या परिवारवालोंके लिए कातता हूँ। पर उसने मुझे उसका कारण आँकड़े पेश करते हुए बताया, जिससे मुझे आनन्द और आश्चर्य दोनों हुए। उसने कहा कि मैं अपना सूत खुद कातता हूँ। अपने लिए कपास भी बो लेता हूँ और अब मैं अपना कपड़ा भी घरमें ही बुन लेता हूँ। और इस तरह फी व्यक्ति दस रुपये साल बच जाते हैं। इन लोगोंको अपने लिए कपासकी तमाम विधियोंकी व्यवस्था करते देखकर हाथकताई और खादीकी जरूरतमें घोर अविश्वास करनेवाले लोगोंको भी उसका कायल हो जाना चाहिए। यहाँ निपट अपढ़ और अनजान देहातियोंमें, सच्चेसे-सच्चे नमूनेका ग्राम-संगठन खामोशीके साथ चल रहा है। वह उनके जीवनके हर क्षेत्रमें क्रांति ला रहा है। वे अपनी ही विचारशक्तिसे काम लेना सीख रहे हैं।

परिषदके बाद

परिषद्के बाद मैंने समाजके बड़े लोगोंकी सभा बुलाई। तीससे ऊपरके लोगोंने अपने नाम बतौर कार्यकर्ता लिखाये। उनमें औरतें भी थीं। उन्होंने स्वयं भी कातने, खादी पहनने और शराब कतई न पीनेकी प्रतिज्ञा की। और उन्होंने पाँच हफ्तोंके भीतर पाँच-पाँच ऐसे ही कार्यकर्ता तैयार करनेका वचन दिया और पाँच सप्ताह