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बीत जानेके बाद इस बातपर विचार करनेके लिए वे पुनः एकत्र होंगे कि अब यह सुधार-कार्य किस तरह आगे बढ़ाया जाये।

रामनाम

जोशमें प्रतिज्ञा कर लेना काफी आसान है। पर उसपर कायम रहना और खासकर प्रलोभनोंके बीच, मुश्किल होता है। ऐसी परिस्थितिमें ईश्वर ही मददगार होता है। इसीलिए मैंने सभाको रामनामका सहारा लेनेकी सलाह दी। राम, अल्लाह, गॉड, सब मेरे नजदीक एकार्थक शब्द हैं। मैंने देखा कि भोले-भाले लोगोंके दिलोंमें जाने कैसे यह खयाल बैठ गया है कि उनके संकटको घड़ीमें मैं कोई अवतार आ खड़ा हुआ हूँ। मैं उनके इस अन्धविश्वासको दूर कर देना चाहता था। मैं जानता हूँ कि मैं अवतरित नहीं हुआ हूँ। एक निर्बल व्यक्तिके प्रति उनका ऐसा भरोसा केवल भ्रम ही है। इसलिए मैंने उनके सामने एक सादा और आजमूदा नुस्खा पेश किया जो आजतक कभी व्यर्थ सिद्ध नहीं हुआ है अर्थात् हर रोज सूर्योदयसे पूर्व और शामको सोने जानेके पहले अपनी प्रतिज्ञाएँ पूरी करनेके लिए ईश्वरकी सहायता माँगना। करोड़ों हिन्दू उसे रामके नामसे पहचानते हैं। बचपनके दिनोंमें मैं जब कभी डरता तब मुझसे रामनाम लेनेको कहा जाता था। मेरे कितने ही साथी ऐसे है जिन्हें संकटके अवसर पर रामनामसे बड़ी सान्त्वना मिली है। मैंने धाराला और अछूतोंको रामनामका नुस्खा बताया। मैं अपने उन पाठकोंके सामने भी इसे पेश करता हूँ जिनकी श्रद्धा और दृष्टि पोथी पढ़-पढ़कर मंद न पड़ गई हो। विद्वत्ता हमें जीवनकी भूलभुलैयामें अनेक स्थानोंसे निकाल कर ले जाती है; पर संकट और प्रलोभनकी घड़ीमें वह हमें कोई सहारा नहीं दे पाती। उस हालतमें श्रद्धा ही हमें उबारती है। रामनाम उन लोगोंके लिए नहीं है, जो ईश्वरको जैसे-तैसे रिझानेकी इच्छा रखते हैं और हमेशा इसी आशामें रहा करते हैं कि वह हमें बचा लेगा। यह उन लोगोंके ही लिए है जो ईश्वरसे डर कर चलते हैं, जो संयमपूर्वक जीवन बिताना चाहते हैं; किन्तु लाख प्रयत्न करनेपर भी उसका पालन नहीं कर पाते।

आदर्श पाठशालाएँ

राष्ट्रीय पाठशाला और विद्यालयकी कांग्रेसकी व्याख्या सुनकर घबड़ानेवाले शिक्षकों और विद्यार्थियोंकी हिम्मत बढ़ानेके लिए मैं दो ऐसी पाठशालाओंका जिक्र करना चाहता हूँ जिनके शिक्षकों और विद्यार्थियोंसे मैं इन परिषदोंके दौरान मिला था। एक सुणाव नामक ग्राम है जो आणंद तहसीलमें है। और दूसरा वराड नामक ग्राम है जो बारडोली तहसीलमें है। इन दोनों पाठशालाओंमें सभी विद्यार्थी बड़े उत्साहसे कताई करते हैं। वराडमें लड़के अपने लिए रुई खुद ही धुन लेते हैं और अपनी पूनियाँ बना लेते हैं । अ० भा० खादी मण्डलकों वे नियमपूर्वक हर मास कुछ सूत भेजते रहते हैं। मैंने सुणाव ग्रामके लड़कोंसे बहुत देरतक बातचीत की। वे मुझे असाधारण रूपसे बुद्धिमान मालूम हुए। वे जानते थे कि वे सूत क्यों कात रहे हैं। उन्होंने कहा हम कांग्रेसको जो सूत देते हैं वह गरीबोंके लिए देते हैं और उसके अलावा जो सूत कातते हैं वह अपने कपड़ोंके बारेमें स्वावलम्बी बननेके लिए। जिन्हें जिज्ञासा