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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

होता, बल्कि प्रचुर राजनैतिक दूरदर्शिता ही प्रदर्शित होती है। तबसे अबतक जो-जो सबक हमने सीखे हैं वे सीखनेके ही योग्य थे। यदि हम उस समय कोई सस्ती विजय प्राप्त कर लेते तो वह हमें अन्तमें बहुत महँगी पड़ती और भारतमें ब्रिटिश साम्राज्यकी सत्ताकी जड़ें और भी मजबूतीसे जम गई होती। यह बात नहीं कि वह अब भी काफी मजबूत नहीं है। पर उस अवस्थामें वह मजबूती बहुत ज्यादा असरदार होती।

आलोचक कह सकते हैं कि ये सभी तर्क सम्भावनापर आधारित हैं। यह बात ठीक है। लेकिन मेरे नजदीक तो यह सम्भावना निश्चितताके ही करीब पहुँच जाती है। कुछ भी हो; बारडोलीके इस निर्णयसे अब यह आशा बँधती है कि वह दिन दूर नहीं है जब संघर्ष छेड़ना बहुत सम्भव हो जायेगा। अब जो लड़ाई छेड़ी जायेगी वह अवश्य ही कोई फैसला करनेपर ही खतम होगी। पर आज मुझे यह बात स्पष्ट रूपसे स्वीकार करनी पड़ती है कि भारतके क्षितिजपर आज कोई ऐसा लक्षण नहीं दिखाई देता जिससे शीघ्र ही सामुदायिक सविनय अवज्ञाकी आशा मनमें बाँधी जा सके। इसका एक कारण यह है कि संग्रामके लिए पर्याप्त कार्यकर्त्ता नहीं हैं। हमने अबतक जनतासे गहरा सम्बन्ध स्थापित करनेकी जितनी योग्यता दिखाई है, हमें उसके साथ उससे कहीं अधिक गहरा सम्पर्क स्थापित करना चाहिए। हमने अबतक जनताकी जितनी सेवा करनेकी और उसके साथ जितनी एकरूपता प्राप्त करनेकी इच्छा की है, हमें उससे अधिक सहानुभूतिपूर्ण और अनवरत सेवा करने और उसके साथ एकरूप होनेकी जरूरत है। हमें उसके साथ एक-रस होकर उससे आत्मीयता अनुभव करनी चाहिए। हम तभी लोगोंका नेतृत्व सफलतापूर्वक करने और उन्हें शान्तिमय विजयके द्वारतक ले जानेकी आशा कर सकते हैं। हाँ, इसमें कोई शक नहीं कि जब हम उस अवस्थाको प्राप्त हो जायेंगे तब हमें सामूहिक सविनय अवज्ञा करनेकी आवश्यकता शायद ही रहेगी। पर यह विश्वास तो हमारे अन्दर होना ही चाहिए। आज तो कमसे-कम मुझमें, ऐसा विश्वास जरा भी नहीं है। आजकी हालतमें सामूहिक सविनय अवज्ञा करनेकी किसी भी कोशिशका आवश्यक परिणाम होगा---जहाँ-तहाँ अनियन्त्रित हिंसाका विस्फोट। उसे सरकार उसी दम दबा देगी। परन्तु सविनय अवज्ञामें तो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष किसी भी तरह हिंसा करनेकी या हिंसाका समर्थन करनेकी गुंजाइश ही नहीं है। चरखेकी योजना निस्सन्देह इसीलिए की गई है कि उससे वैसा वातावरण तैयार होगा। चरखा उच्चतम कोटिकी समाजसेवाका प्रतीक है। इसमें हम राष्ट्रीय सेवकोंको जनताके साथ एक सूत्रमें बाँधनेकी शक्ति है। यह लोगोंके अन्दर ज्ञानमय पारस्परिक सहयोग उत्पन्न करनेवाला--ऐसे पैमानेपर कि जिसे दुनियाने अबतक नहीं देखा--अग्रदूत है। चरखा कार्यक्रमके असफल होनेका अर्थ यह होगा कि फिर जनतामें चारों ओर घोर निराशा छा जायेगी और भुखमरी फैल जायेगी। चरखा तथा उसके पीछे जो चीजें हैं उनके अतिरिक्त अन्य कोई वस्तु ऐसी नहीं है जिससे जनता इतनी जल्दी अपने पैरोंपर खड़ी हो सके। उसकी गति किसीके रोके नहीं रुक सकती। वह निर्दोषताकी तो साक्षात्