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२९९. दिल्लीमें खादी

एक सज्जन दिल्लीसे अपने पत्रमें [१] लिखते हैं, पिछले सत्याग्रह सप्ताहमें [२] दिल्ली में कुछ कार्यकर्त्ताओंने घर-घर जाकर खादी बेचनेका निश्चय किया था। उन्होंने डरते हुए और काँपते हृदयसे काम शुरू किया, क्योंकि दिल्लीमें इन दिनों फूट है और उन्हें यकीन न था कि लोग खादी खरीदेंगे। पर यह देखकर हर्ष और आश्चर्य हुआ कि लोग उनकी फेरीसे और वे फेरीके समय जो भजन गाते थे उनसे प्रभावित हुए। आमलोगोंने बड़ी खुशीसे खादी खरीदी। फेरीवालोंकी सारी खादी रोजकी-रोज जरा भी दिक्कतके बिना बिक जाती थी। इस घटनासे हमें एक अनूठी शिक्षा मिलती है। यदि यह बातें सच हों तो कहना होगा कि जनसाधारण आज भी निरामय है। पर मुझे इस विवरणकी सत्यतापर सन्देह करनेका कोई कारण नहीं दिखता। क्या वहाँके कांग्रेस-कार्यकर्त्ता आगे और अधिक विश्वासपूर्वक और व्यवस्थित रूपसे कांग्रेसके सदस्य बनानेका प्रयत्न करेंगे? यदि दिल्ली अपनी आजकी हालतसे उठ सके और फिर तीन साल पुरानी हालतपर पहुँच सके तो हकीम साहबकी गैरहाजिरीमें उनके लिए इससे ज्यादा तारीफकी बात और क्या होगी?

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २३-४-१९२५

३००. कतैयोंको इनाम

मेरठसे मिला यह पत्र प्रकाशित करते हुए मुझे खुशी होती है: [३]

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २३-४-१९२५

१. देखिए "पत्र: ब्रजकृष्ण चाँदीवालाको", २०-४-१९२५।

२. राष्ट्रीय सप्ताह जो ६ अप्रैलसे १३ अप्रैलतक मनाया गया था।

३. यह यहाँ नहीं दिया गया है। इसमें नौचन्दीके मेलेमें चरखा-दंगलमें इनाम पाने वालोंके नाम दिये गये थे।