पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 26.pdf/५७१

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३०९. टिप्पणियाँ

मेरा बोझ

एक काठियावाड़ी भाई लिखते हैं:[१]

मुझे तो इस सुझावमें मोहके अलावा और कुछ नहीं दिखता। मुझे नहीं लगता कि मैं अपना सूत भेंट करूँ तो उससे बहुतसे लोग सूत कातने लग जायेंगे या इस सम्बन्धमें उनमें अधिक दृढ़ता आ जायेगी। फिर भी, अगर इन भाईका अनुमान सही हो तो मैं कार्यकर्त्ताओंके लिए अधिक सूत कातने के लिए तैयार हूँ। कुछ लच्छियाँ भेंट करना मेरे लिए आसान है। लेकिन जो नियमित रूपसे कातेंगे, मैं सिर्फ उन्हींको अपनी लच्छियाँ दूँगा, हालाँकि मेरी इच्छा तो यह है कि लोग कातने के लिए ही कातें। मेरा कता सूत मिलेगा, वे इसलिए ही सूत कातें, इसमें क्या लाभ है, सो मुझे तो दिखाई नहीं देता। उचित तो यह है कि लोग कताई धर्म मानकर करें।

"दुखी मनसे"

एक काठियावाड़ी भाई लिखते हैं:[२]

मैं कैसे समझूँ कि जो मनुष्य खुशी-खुशी पैसा देता है और दूसरोंसे दिलाता है, वह दुखी मनसे पैसा देता है? पत्र-लेखकको दूसरोंके मनका हाल कैसे मालूम हआ? व्यापारी वर्गको फसलाने की क्या बात है? क्या फुसलाया भी जा सकता है? अगर यह वर्ग पैसा न दे या हम इस वर्गसे पैसा न लें तो पैसा अन्य किस वर्गसे मिल सकता या लिया जा सकता है? देशकी आर्थिक स्थितिको व्यापारी न सुधारेंगे तो दूसरा कौन सुधारेगा? यह उन्हींके हाथोंसे बिगड़ी है; इस बातको अच्छे व्यापारी स्वीकार करते हैं, और इसीलिए वे प्रायश्चित्तके रूपमें भी धन देते हैं। फिर, गरीबोंमें खादी बाँटनेका प्रयोग तो अभी बाकी ही है। इसलिए यह कैसे कहा जा सकता है कि यह पैसा गरीबोंके पास नहीं पहुँचा? मेरा दृढ़ मत है कि जिन हाथोंमें परिषद्की व्यवस्था है, वे निःस्वार्थ लोग हैं। मेरा विश्वास है कि जो व्यवस्था उनके हाथों या उनकी देख-रेख में होगी, वे उसमें निश्चय ही सावधानी और ईमानदारी बरतेंगे। वे अवश्य ही जानबूझकर तो कोई अनुचित काम न करेंगे। अन्तमें हम पत्रमें उठाये गये इस सवालको लें: "नहीं तो जो लोग सेवा करनेका दावा करते

 
  1. पत्र यहाँ नहीं दिया जा रहा है। पत्र लेखकने गांधीजीको सुझाव दिया था कि वे जिन खादीकार्यकर्त्ताओंके कामसे सन्तुष्ट हों उन्हें अपने हाथके कते सूतको लच्छिया भेंट करें, क्योंकि इससे उनमें अधिक निष्ठा आयेगी और खादीके प्रचारमें सहायता मिलेगी।
  2. पत्र यहाँ नहीं दिया जा रहा है। पत्र-लेखकने गांधीजीसे कहा था कि लोग आपको चन्दे में जो-कुछ दे रहे हैं, बहुत ही अनिच्छापूर्वक दे रहे है।