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चरखेका अभाव

यही भाई यह भी लिखते हैं:[१]

मैं नहीं मानता कि लोग खादी कार्यालयोंमें पैसेके खयालसे काम करते हैं। अमरेली कार्यालयके व्यवस्थापक लाभ नहीं कमाते, बल्कि उन्होंने तो उसमें अपनी और अपने साथियोंकी भी पूँजी लगा रखी है। बढवानके खादी कार्यके संचालक शुद्ध निःस्वार्थ भावसे काम करते हैं। मढडाके खादी कार्यालयके सम्बन्धमें कुछ आरोप है। मन्त्रीको उसके हिसाब-किताबकी पूरी जाँच करनेके लिए मढडा जाना है। भाई शिवजीने पूरा हिसाब देना स्वीकार किया है। मैं उस जाँचका जो परिणाम होगा उसे अवश्य प्रकाशित करूँगा। ऐसे लोग भी हैं जो आधी कीमतपर मिलनेपर भी चरखेको प्रश्रय देनेके लिए तैयार नहीं हैं। इस अश्रद्धाका उपचार यही है कि चरखेमें जिनकी श्रद्धा हो, वे उसे और भी पुष्ट करें। अगर श्रद्धा दृढ़ रहती है तो अश्रद्धा स्वयं ही दूर हो जाती है। श्रद्धा सूर्य है, अश्रद्धा अन्धकार। सूर्यके उदय होते ही अन्धकारका लोप हो जाता है। यह दुःखकी बात है कि सुखी-सम्पन्न परिवारोम चरखा नहीं होता। इसीको यज्ञकी भावनाका अभाव कहते हैं। चरखा निःस्वार्थ श्रम सीखनेका एक मात्र साधन है। इसलिए मैं युवकोंको उससे अच्छा यज्ञ और उससे अच्छा सेवा-कार्य और क्या बता सकता हूँ? वे इसके बाद अथवा इसके साथ-साथ चाहे और जो भी सेवा करें, लेकिन चरखा तो आधार-स्तम्भ है।

श्री जयकरका चरखा

इस प्रसंगमें पाठकोंको यह जानकर खुशी होगी कि बैरिस्टर जयकरने नियमपूर्वक सूत कातना शुरू कर दिया है। उन्होंने अपने सूतकी दूसरी किस्त मुझे भेजी है। अब वे अच्छे चरखेकी माँग कर रहे हैं। अभी तो उनके पास एक बहुत ही खराब चरखा है। फिर भी वे उससे नियमपूर्वक सूत कात रहे हैं। मैं श्री जयकरको बधाई देता हूँ, और कामना करता हूँ कि उनका निश्चय सदा कायम रहे।

{{c|टेढ़ा तकुआ

गाएक शालाके बालकोंका निरीक्षण करते हुए मैंने देखा कि वे सब चरखा चलानेके लिए तो बहुत उत्सुक हैं, लेकिन उनका तकुआ बार-बार टेढ़ा हो जाता है। मैंने शिक्षकसे पूछा: "आप तकूआ सीधा नहीं कर सकते क्या?" उन्होंने बड़ा साफसा उत्तर दिया: "मैं कातना तो जानता हूँ; लेकिन चरखेकी खामियोंको दूर नहीं कर सकता और टेढ़े तकुएको सीधा तो अवश्य ही नहीं कर सकता।" मेरी मान्यता है कि राष्ट्रीय शालाके हर शिक्षकको चरखा-शास्त्रका ज्ञान प्राप्त करना ही चाहिए। हर शालाके लिए अलग चरखा-शिक्षक नहीं रखा जा सकता है। इसलिए अगर हमें प्रत्येक राष्ट्रीय शालामें चरखा चलाना ही हो तो शिक्षकोंको चरखेकी कलाको सीखनेके लिए प्रोत्साहन देना चाहिए। इस कलाको सीखनेका मतलब है माल बनाना, माल

 
  1. यहाँ नहीं दिया जा रहा है। उनका आरोप था कि वास्तवमें चरखेमें लोगोंकी रुचि नहीं है।