पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 26.pdf/५७४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५४४
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

चढ़ाना, चमरखोंकी जाँच करना और जरूरत पड़नपर चमड़े या मूँज वगैराकी चमरखें बनाना, साड़ी चढ़ाना और तकुआ सीधा करना, यह सब सीखना। जिस प्रकार उस बढ़ईको बढ़ई नहीं माना जायेगा जो अपने औजार ठीक करना न जानता हो, उसी प्रकार जो कातनेवाला अपने चरखेकी खामियाँ नहीं जानता या उन्हें दूर नहीं कर सकता उसे कातनेवाला नहीं माना जा सकता। अब तो चरखा-शास्त्रके ज्ञान और अनुभवके बिना किसी भी शिक्षकको शिक्षक नहीं मानना चाहिए। जिसे चिन्ता और चाव हो, वह इन कुछ-एक बातोंका ज्ञान बहुत कम समयमें थोड़े ही परिश्रमसे प्राप्त कर सकता है।

गन्दे कपड़े

मैंने अपनी इस बारको गुजरात यात्रामें राष्ट्रीय शालाओंमें पर्याप्त बालकोंको देखा। उनमें से बहुतसे बालक भोंडे और गन्दे थे। किसी-किसीकी टोपी बहुत मैलीकुचैली थी और इतनी बदबू दे रही थी कि उसे छूना मुश्किल था। कुछकी पोशाक भी विचित्र थी। किसी-किसीने इतने कपड़े लाद रखे थे कि वे इस मौसमके देखते हुए असहनीय थे। कोई पतलून पहन आया था तो उसमें बटन लगा कर नहीं आया था। किसी-किसीके कपड़े फटे हुए भी थे। मुझे तो लगता है कि जिस तरह छूत रोगसे पीड़ित बालकोंको शालामें आनेकी मनाही होनी चाहिए, उसी तरह जो लड़के मैले-कुचैले हों अथवा जिनके कपड़े गन्दे या फटे हुए हों, उनका भी शालामें आना निषिद्ध होना चाहिए। अगर इसपर कोई यह कहे कि ऐसा करें तो बालक स्वच्छता-सुघड़ता कहाँ और कब सीखेंगे तो इसका जवाब आसान है। जो बालक ऐसी स्थितिमें आयें उन्हें प्रथम तो शालाके पासकी नहानेकी जगहपर भेजकर नहलाया जाये, उनके कपड़े उन्हींके हाथों धुलवाये जायें, और जबतक उनके कपड़े सूखें तबतक शालाकी ओरसे दिये गये कपड़े पहनाये जायें। जब उनके कपड़े सूख जायें तब वे उन्हें पहनकर शालाके कपड़े धोकर, सुखाकर और तह करके वापस कर दें। अगर इसमें खर्च बढ़नेका भय हो तो बालकोंको चिट्ठी देकर उन्हें घर भेज देना चाहिए और फिर जब वे साफ-सुथरे होकर आयें तब उन्हें शालामें आने दिया आये। बाहरी स्वच्छता और सुघड़ता तो पहला पाठ होना चाहिए। अगर सभी बालकोंके लिए शालामें एक-सी पोशाक पहनकर आना अनिवार्य करने में कठिनाई हो तो अवश्य ही यह बात भी तो बर्दाश्त करने लायक नहीं है कि वे शालामें चाहे जैसे कपड़े पहन कर आयें।

जो बात स्वच्छ कपड़े के सम्बन्धमें कही, वही कवायदके विषयमें भी कही जा सकती है। बालकोंको उठने-बैठने, चलने-फिरने और हजारोंकी संख्यामें समूह बनाकर आने-जानेका तरीका भी मालूम होना चाहिए। अभी तो हम देखते हैं कि कोई कमर झुकाकर बैठता है तो कोई पैर पसारकर, कोई आलस्यसे जमुहाइयाँ लेता है तो कोई बैठा-बैठा रोता है। और कदम मिलाकर चलना तो उन्हें भला आ ही कैसे सकता है? इन बातोंकी शिक्षा भी बालकोंको आरम्भमें मिलनी चाहिए। इससे स्वयं बालक अच्छे लगेंगे, उनकी शालाकी शोभा बढेगी और उनके भीतर एक प्रकारका उत्साह आयेगा। फिर, इस प्रकारसे कवायद सीखे बालकोंको बिना किसी कठिनाई या कोला-