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३११. तार: मथुरादास त्रिकमजीको
[२७ अप्रैल, १९२५][१]
माताका स्वर्गवासिनी होना ही ठीक था। उन्हें कष्टसे छुटकारा पानेकी जरूरत थी।
[गुजरातीसे]
बापुनी प्रसादी
बापुनी प्रसादी
३१२. पत्र: फूलचन्द शाहको
वैशाख सुदी ४ [२७ अप्रैल, १९२५][२]
भाई फूलचन्द,
अमरेलीसे शिकायत आई है कि वहाँसे जो रुई भेजी जाती है उसमें पत्थर होते हैं। उनका वजन रुईके वजनमें गिना जाता होगा।
वहाँ रुई जल्दी बिक जाती है, इसलिए तुम तुरन्त खरीद लेना और उसमें कोई गड़बड़ी न हो, यह ध्यान रखना।
आशा है तुम्हारी माताजी ठीक होंगी।
बापूके आशीर्वाद
[पुनश्च:]
मैं २८ और २९को बम्बईमें रहूँगा और फिर कलकत्ते में।
मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० २८२७) से।
सौजन्य: शारदाबहन शाह