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३१३. भेंट: एसोसिएटेड प्रेस ऑफ इंडियाके प्रतिनिधिसे

बम्बई
२८ अप्रैल, १९२५

महात्मा गांधीका ध्यान कताई सदस्यताके सम्बन्धमें कुछ लोगों द्वारा उठाई गई एक आपत्तिकी ओर आकर्षित किया गया। आपत्तिका आधार यह था कि इससे कांग्रेसके प्रातिनिधिक रूपमें गम्भीर बाधा आती है और वह धीरे-धीरे केवल कुछ सौ कतैयोंकी जमात-भर रह जायगी। उसके उत्तरमें गांधीजीने कहा:

कताई-सदस्यताके बारेमें मेरी राय अब भी वही है जो बेलगाँवमें थी। यह बात बिलकुल सही है कि कांग्रेसमें सदस्योंकी संख्या घट गई है, पर जनता अब भी उसके पीछे है। किन्तु मैं वही बात फिर दोहराता हूँ जो मैंने 'यंग इंडिया' के [१] पृष्ठोंमें लिखी थी कि यदि सदस्य इस मताधिकारको पसन्द नहीं करते तो इसको बदलना उनके ही हाथमें है, भले ही मैं ऐसे परिवर्तनको कितना ही शोचनीय क्यों न मानूँ।

यह पूछे जानेपर कि क्या वे डा० एनी बेसेंट द्वारा प्रस्तावित भारत राष्ट्रमण्डल विधेयक ('कॉमनवेल्थ ऑफ इंडिया बिल') [२] की योजनाको इस काबिल समझते हैं कि स्वराज्यवादियों सहित सभी दलोंके एक गोलमेज सम्मेलनमें उसपर विचार किया जाये, महात्मा गांधीने कहा:

मैंने विधेयकका अध्ययन करनेका और उसके बारेमें डा० बेसेंटको अपनी राय देनेका वचन दिया है। वे जो भी कुछ कहें, उसपर पूरे सम्मानके साथ ध्यान दिया जाना चाहिए। आज लोग किसी स्वराज्यकी योजनापर विचार करनेके लिए तैयार हैं या नहीं, यह प्रश्न अलग है। ...

 
  1. देखिए "मेरी स्थिति", १६-४-१९२५।
  2. श्रीमती एनी बेसेंटका विधेयक कुछ विज्ञप्तियोंके साथ जनवरी, १९२५ के प्रारम्भमें प्रकाशित किया गया। उसमें निम्न प्रस्ताव शामिल थे: १. गाँवसे लेकर केन्द्रीय सरकारतक प्रशासनकी इकाइयोंका पाँच श्रेणियों में वर्गीकरण। २. मतदाताओंकी आर्हताओंकी परिभाषा। ३. मूलभूत अधिकारोंकी घोषणा। ४. जबतक भारतीय संसदको नियन्त्रण नहीं सौंपा जाता तबतक सैनिक शक्ति तथा वैदेशिक सम्बन्धोंपर सम्राटके प्रतिनिधिक रूपमें वाइसरायका नियन्त्रण। ५. केन्द्रीय विधान सभा भारतीय रियासतोंके सम्बन्धमें कोई कदम उठानेसे पहले वाइसरायसे उसका अनुमोदन कराये। यह योजना अप्रैलके प्रारम्भमें कानपुरमें सर तेज बहादुर सप्रूकी अध्यक्षतामें हुए सम्मेलनमें अन्तिम रूपसे स्वीकार कर ली गई थी। देखिए इंडिया इन १९२४-२५, पृष्ठ ३४१।