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भाषण: अखिल भारतीय गोरक्षा सभा, बम्बईमें

यह पूछनेपर कि आपका स्वास्थ्य कैसा है, महात्माजीने कहा कि अहमदाबादकी अपेक्षा मैं अब अच्छा हूँ। यह बात सही नहीं है कि मैं स्वास्थ्य ठीक न होनके कारण बंगाल प्रान्तीय सम्मेलनमें भाग नहीं ले रहा हूँ। उन्होंने मुस्कराते हुए कहा कि बंगाल जानेके लिए बिलकुल स्वस्थ हूँ।

[अंग्रेजीसे]
बॉम्बे क्रॉनिकल, २९-४-१९२५

३१४. भाषण: अखिल भारतीय गोरक्षा सभा, बम्बईमें[१]

२८ अप्रैल, १९२५

मैंने अपनी जिन्दगीमें बहुतसे काम हाथमें लिये हैं, परन्तु मुझे याद नहीं आता कि उनमें से किसी भी कामको हाथमें लेते समय मुझे वैसा भय और रोमांच हुआ हो जैसा आज इस कामको हाथमें लेते समय हो रहा है। मैं ऐसा आदमी माना जाता हूँ जो आम तौरपर जोखिमोंको उठाते हुए नहीं डरता। मैंने अपनी जिन्दगीमें भयंकर जान पड़नेवाले काम भी किये हैं। मैं गोरक्षाके कार्यमें लड़कपनसे ही दिलचस्पी लेता आया हूँ और मैंने ३० सालसे तो उसका एकान्त अध्ययन किया है। मैंने इसके सम्बन्धमें कभी-कभी कुछ लिखा भी है। फिर भी मैंने यह नहीं माना कि मैं गोरक्षाके कामको करनेकी शक्ति रखता हूँ। आज भी मैं ऐसा नहीं मानता। इसका यह अर्थ नहीं कि यह काम कैसे होगा, मैं यह नहीं जानता। जानता तो हूँ; परन्तु यह केवल बुद्धिके प्रयोगसे नहीं हो सकता। इसके लिए बहुत संयम और तपोबलकी आवश्यकता है। इसके लिए आज मुझमें जितना संयम और तपोबल है उससे अधिककी आवश्यकता है। यदि सम्भव हो तो मैं आगे बढ़कर कामोंको हाथमें लेना चाहता हूँ। परन्तु असलमें मेरा भाग्य ही ऐसा है कि मैंने अपने जीवनमें आजतक जिन-जिन कामोंको हाथमें लिया है वे सब अनायास ही मेरे पास आये हैं। मैं जबसे इंग्लैंडसे यहाँ आया हूँ तभीसे मैं इसका अनुभव कर रहा हूँ। मैंने खयाल भी नहीं किया था कि मुझे बेलगाँवमें गोरक्षा परिषद्का सभापति बनना होगा। मैंने वह पद वहाँके कार्यकर्त्ताओंके प्रेमवश ही स्वीकार किया था। किन्तु उस समय मुझे यह खयाल सपने में भी नहीं था कि स्थायी संस्था भी मेरे ही हाथसे बनेगी। परन्तु वहाँके कार्य-कर्त्ताओंने तो तमाम बातोंकी व्यवस्था कर रखी थी, इसलिए मुझे इसमें स्वभावत: ही हाथ डालना पड़ा और कार्यकारिणी समिति नियुक्त कर दी गई। फिर उसकी बैठक दिल्लीमें करनी पड़ी। वहाँ बहुत-कुछ चर्चा हुई। चर्चा के बाद भी मेरे मनमें आया कि मैं यह भारी काम अपने ऊपर क्यों उठा रहा हूँ। पर चौंडे महाराज मुझे छोड़नेवाले न थे। वे तो मुझसे आग्रह करते ही रहे। तब मैंने सोचा कि जितनी

 
  1. १. यह भाषण अ० भा० गोरक्षा मंडल के संविधानको प्रस्तुत करते समय दिया गया था। संविधानके लिए देखिए "अ० भा० गोरक्षा मंडलके संविधानका मसविदा",२४-१-१९२५।