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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

गो-सेवा मुझसे हो सकती है, मुझे उतनी कर देनी चाहिए। अतः मैंने यह संविधान बनाया और वहाँ जो नेता उपस्थित थे उनके सम्मुख रखा। फिर लालाजी, मालवीयजी, स्वामी श्रद्धानन्दजी, डा० मुंजे आदि समस्त नेताओंने उसे पढ़ा और पसन्द किया। मैं उस समय भी झिझका। मैंने सोचा कि मुझे इतने थोड़े लोगोंसे नहीं, बल्कि दिल्लीमें बड़ी सभा करके उसमें इस संविधानको सर्व साधारणसे स्वीकार कराना चाहिए। अतः वह दिल्लीकी सभा आज यहाँ हो रही है। मैं इस समय दिल्ली नहीं जा सकता था और मुझे अपने कामका खयाल करके चलना पड़ता है, इसलिए हम यहाँ अनायास ही एकत्रित हुए हैं। यह संविधान तमाम अग्रगण्य नेताओंने देखा है और पसन्द किया है, इतना ही नहीं, बल्कि कुछ सदस्योंकी काम-चलाऊ समितिने भी, जिसकी बैठक गामदेवीमें हई थी, उसे साधारण फेरफारके बाद स्वीकार किया है; वह यों ही नहीं, बहुत विचार और छानबीनके बाद एक-दो सुधार करके स्वीकार किया गया है।

आज मैं जिस कामके लिए आपकी सहमति और सहायता चाहता हूँ वह एक भारी काम है। मैं कई बार कह चुका हूँ कि स्वराज्यका काम इससे सहल है। इसका कारण यह है कि यह धार्मिक कार्य है, और यदि धार्मिक कार्यमें भूल हो तो मैं उसे महापाप मानता हूँ। स्वराज्यके काममें मैंने भूलें कीं, उनके लिए पश्चात्ताप किया, उन्हें सुधारा और मैं पार हो गया। परन्तु यदि इसमें भूल हो तो उसका सुधार करना कठिन होगा। गो-माताकी सेवा करना ऐसा ही कठिन है। ढेढ़ोंको दुःख हो तो वे कह सकते हैं, ब्राह्मण-अब्राह्मणके झगड़ेमें अब्राह्मणोंको दुःख हो तो वे कह सकते है, हिन्दू और मुसलमान भी अपना दु:ख बता सकते हैं और एक-दूसरेके सिर फोड़ सकते हैं। परन्त गो-माता तो गूँगी है, बोलती नहीं, उसे वाणी नहीं मिली। आप उसपर जितना बोझ डाल देंगे, वह उतना उठा लेगी, उसे आस्ट्रेलिया भेज देंगे तो वहाँ भी चली जायेगी, अपने स्वार्थके लिए उसके बछड़ोंको आरसे छेदेंगे तो वह उसे भी सह लेगी, और धूपमें बोझ लादकर चलायेंगे तो भी चलेगी। उसकी सेवा करना बहुत मुश्किल काम है। परन्तु मैंने इस कामका भार केवल कर्त्तव्य-भावसे उठाया है।

परन्तु इसमें मेरी शक्तिकी कई मर्यादाएँ हैं। पहली व्यावहारिक मर्यादा यह है कि मैं इस कामके लिए घर-घर जाकर रुपया इकट्ठा नहीं कर सकूँगा। मैं चन्दा इकट्ठा करना जानता हूँ। जब-जब मैंने धन माँगा है तब-तब मुझे देशने अत्यन्त उदारतासे धन दिया है। परन्तु इस समय मुझे न इतनी फुरसत है और न मुझमें शक्ति है कि मैं घर-घर जा सकूँ। इसलिए द्रव्य एकत्र करके ईमानदारीसे उसका विनियोग करनेका जिम्मा आपका है। यदि हम ऐसे धर्म-कार्यमें असत्य और पाखण्डको स्थान देंगे तो वह भयंकर बात होगी। हम काम बुरा करेंगे तो गाय हमें सींगोंसे मारने आयेगी, और इस युगमें इस बातकी परवाह तो किसीको भी नहीं है कि उन्हें अपने कर्मका फल भविष्यमें क्या भोगना पड़ेगा और अगले जन्ममें क्या होगा? इसलिए आप दम्भ और पाखण्डसे जितने बच सकें उतने बचें। यह सब करना आपका काम है। ये मेरी मर्यादाएँ हैं।