पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 26.pdf/५८५

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टिप्पणियाँ

परिवर्तनोंके कर दिये जानेपर भी सर्वदलीय सम्मेलनके आयोजनका भार अपने ऊपर नहीं ले सकता, किन्तु इस उद्देश्यकी पूर्तिके लिए आयोजित किसी भी सम्मेलनमें भाग लेनेके लिए प्रसन्नतापूर्वक तैयार हूँ। मैं वर्तमान स्थितिपर जितना ही अधिक विचार करता हूँ, मेरा यह विश्वास उतना ही दृढ़ होता जाता है कि सत्ता प्राप्त करनेके लिए मेरा काम तो अन्दरसे उद्योग करना ही है। श्री जमनादास द्वारकादास [१] मुझे बताते हैं कि मौजूदा मसविदा अन्तिम नहीं है। एक दूसरा मसविदा तैयार किया जा रहा है। उसमें मेरे बहुतसे अथवा कमसे-कम कुछ सुझाव शामिल कर लिये जायेंगे। मुझे मालूम हुआ है कि यह अन्तिम मसविदा हालमें ही कानपुरमें किये गये निर्णयोंके आधारपर तैयार किया जा रहा है। यह कहने की आवश्यकता नहीं कि डा० बेसेंटकी योजना जनताके सामने प्रस्तुत कुछ योजनाओंमें से एक है। इसलिए प्रत्येक भारत-प्रेमीको उसका सावधानीसे अध्ययन करना चाहिए। यह तो स्पष्ट ही है कि राष्ट्रीय जीवनके लिए स्वराज्य आवश्यक है। इसलिए हम जिस प्रयत्नसे स्वराज्यके समीप पहुँचते हैं, वैसा प्रत्येक प्रयत्न पसंद ही किया जायेगा। अन्तमें मैं अपनी यह सम्मति प्रकट किये बिना नहीं रह सकता कि विधेयक अत्यन्त व्यापक है और बहुत ही सावधानीसे तैयार किया गया है। कुछ बातोंमें तो यह बिलकुल मौलिक है।[२]

[अंग्रेजीसे]
न्यू इंडिया, २९-४-१९२५

३१७. टिप्पणियाँ

स्पर्धाके योग्य

बारडोली तहसीलकी एक राष्ट्रीय शालाके एक शिक्षक लिखते हैं कि मैंने पिछले चार महीनोंमें कोई सात मन कपासके बोंडे तोड़े; उनमेंसे कपास निकालकर लोढ़ी, रुई धुनी, और उस रुईसे अठारह पौंड सूत काता जिसकी लम्बाई ३ लाख गज थी। पढ़ानेका काम करते हुए भी चार महीनेतक सूत कातना जारी रखना एक बड़ा कार्य है। फिर भी वे कहते हैं, मैं वर्षके शेष दिनोंमें न केवल कातना जारी रखूँगा, बल्कि इससे भी अधिक सूत कातूँगा। इस उद्योगका क्या अर्थ है, यह अमरेलीके एक कार्यकर्त्ताकी भेजी रिपोर्टसे अधिक अच्छी तरह मालम हो जाता है। उन्होंन एक साठ बरसकी वृद्धा स्त्रीकी बात लिखी है। वह चार मील पैदल चलकर अपने लिए पूनियाँ लेने आई थी। उसके मनोभाव सुनिए--"आप लोगोंने हमपर यह

 
  1. होमरूलके नेता और सर्वदलीय सम्मेलनकी हिन्दू-मुस्लिम एकता उपसमितिके सदस्य।
  2. इस लेखको न्यू इंडियामें देते हुए श्रीमती एनी बेसेंटने नीचे यह टिप्पणी दी थी: कानपुरमें अन्तिम मसविदेपर विचार हुआ और वह पारित कर दिया गया। वह इस समय छप रहा है और छपते ही गांधीजीको भेजा जायेगा। किन्तु मेरे ख्यालसे उसमें गांधीजीके सुझाव आ जाते हैं, यह नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि उनके ये विचार बहुत विलक्षण है और वे सम्मेलनके सामने आये ही नहीं।