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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

एक महान् उपकार किया है। हमारे यहाँ लगातार तीन सालसे अकाल था। हमारे पास कोई काम नहीं था। और बिना काम किसीका गुजारा कैसे हो सकता है? अब मुझे यह काम मिल गया है और अब मैं प्रसन्न रहूँगी।" किन्तु उक्त शिक्षकके पास तो काम था। उन्होंने जो कठिन श्रम करना शुरू किया उन्हें उसकी जरूरत नहीं थी। परन्तु उसका उदाहरण अन्ततः दूसरोंको भी तेजीसे अपने रंगमें रंगेगा और उन लोगोंको जो कि काहिल बने बैठे हैं, इस उत्पादक एवं आवश्यक राष्ट्रीय उद्योगमें संलग्न करेगा। फिर भी इस वृद्धा स्त्रीका उदाहरण एक दूसरी बातका नमूना है। ऐसे हजारों, लाखों स्त्री-पुरुष कामके अभावमें भूखों मर रहे हैं। बहुतसे लोगोंकी, जैसे कि उड़ीसामें, काम करने लायक हालत ही नहीं रही है और काहिली उनकी आदतमें शामिल हो गई है। विपत्तिको दूर करने तथा इस देशके लाखों दुखी घरोंको सुखी करनेका एक मात्र उपाय हाथसे सूत कातना ही है।

क्या मेरे पास धन-सम्पत्ति है?

लोग मुझसे बहुतसे अजीब प्रश्न पूछते हैं। ऐसे ही कुछ प्रश्न गुन्तूर जिलेके एक सज्जनने पूछे हैं:

लोग कहते हैं कि गांधीजी जैसा कहते हैं, वैसा करते नहीं। वे गरीब बननेका उपदेश देते हैं, परन्तु स्वयं सम्पत्ति रखते हैं। वे औरोंको गरीब बनाना चाहते हैं, परन्तु खुद गरीब नहीं हैं। वे सादा और कम खर्चीला जीवन बितानका उपदेश देते हैं, परन्तु उनका खुदका जीवन बहुत खर्चीला है। इसलिए आप इन सवालोंका जवाब दें। क्या आप अपने गुजारेके लिए तथा अपने सफरके लिए अ० भा० का० कमेटी या गुजरात प्रान्तीय कांग्रेस कमेटीसे कुछ लेते हैं? यदि लेते हों तो कितना? यदि नहीं लेते तो फिर आप अपने लम्बे सफरोंका तथा खाने और कपड़ेका खर्च किस तरह चलाते हैं, क्योंकि जैसा लोग समझते हैं, आपके पास तो सम्पत्ति नहीं है?

उनके पत्रमें ऐसी बातें और भी हैं, लेकिन मैंने उनमें से मुख्य-मुख्य बातें चुन ली हैं।

मेरा यह दावा जरूर है कि मैं जैसा कहता हूँ वैसा ही करनेकी कोशिश करता हूँ। मैं फिर भी यह कुबूल करता हूँ कि मेरा खर्च उतना कम नहीं है जितना कम मैं रखना चाहता हूँ। बीमारीके बादसे मेरा खानेका खर्च जितना होना चाहिए उससे ज्यादा हो गया है। मैं उसे गरीब आदमीका खाना किसी तरह नहीं कह सकता। सफरमें भी बीमारीके पहलेसे अब ज्यादा खर्च होता है। मैं अब लम्बे सफर तीसरे दरजेमें भी नहीं कर पाता हूँ। और अब पहलेकी तरह बिना किसी साथीके अकेला यात्रा नहीं करता। ये सब चिह्न सादगी और गरीबीसे रहनके नहीं, बल्कि उसके विपरीत हैं। मैं अ० भा० का० कमेटी या गुजरात कमेटीसे कुछ नहीं लेता। मेरी यात्राका तथा खाने-कपड़े का खर्च मेरे मित्रगण चलाते हैं। यात्रामें रेल किराया अकसर वे लोग दे देते हैं, जो लोग मुझे निमन्त्रित करते हैं। सभी जगह जो सज्जन मुझे अपने घर ठहराते हैं, मेरी जरूरतोंका इतना ज्यादा ध्यान रखते हैं, कि मैं अस