पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 26.pdf/५८७

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टिप्पणियाँ

मंजसमें पड़ जाता हूँ। लोग मुझे यात्रामें मेरी जरूरतसे बहुत ज्यादा खादी दे देते हैं। इसमें से जो खादी बच जाती वह जरूरतमंद लोगोंको दे दी जाती है या आश्रमके, जो लोकहितके लिए चलाया जाता है, सामान्य भण्डारमें जमा कर दी जाती है। मेरे पास कोई सम्पत्ति नहीं है, किन्तु फिर भी मैं समझता हूँ कि मैं दुनियामें सबसे धनी आदमी हूँ, क्योंकि मुझे कभी रुपये-पैसेकी कमी नहीं रही है---न खुद अपने लिए और न अपने सार्वजनिक कामोंके लिए। परमात्माने मुझे हर अवसरपर सामयिक मदद भेजी है। ऐसे कई मौके मुझे याद हैं जब मेरे सार्वजनिक कामोंके लिए मेरे पास एक पैसा भी नहीं रह गया था। पर उस समय ऐसी जगहोंसे रुपया आ पहुँचा जहाँसे रुपया मिलनेकी मुझे कोई आशा न थी। ऐसे अवसरोंने मुझे बहुत नम्र बना दिया है और मेरे हृदयमें ईश्वर तथा उसकी दयालुताके प्रति ऐसी अटल श्रद्धा उत्पन्न कर दी है जो यदि कभी मेरे जीवनमें बहुत बड़ी मुसीबतकी घड़ी आयेगी तब भी अडिग रहेगी। इसलिए संसार खुशीसे इस बातपर हँस सकता है कि मैंने अपनी सब सम्पत्ति त्याग दी है। मेरे लिए तो यह सम्पत्ति-त्याग एक निश्चित लाभ साबित हुआ है। मैं चाहता हूँ कि लोग मेरे इस सन्तोषमें मुझसे प्रतिस्पर्धा करें। यह मेरा सबसे बड़ा खजाना है। इसलिए शायद यह कहना ठीक ही है कि यद्यपि मैं गरीबी अपनानेका उपदेश देता हूँ तो भी स्वयं धनवान् हूँ।

हिन्दी और अंग्रेजी

एक तमिल वकीलका सुझाव है कि मैं 'यंग इंडिया' में एक कालममें अंग्रेजी और उसके सामने दूसरे कालममें उसका हिन्दी अनुवाद दिया करूँ। इससे तमिल लोग बिना कठिनाईके हिन्दी सीख सकेंगे। यह हेतु तो सराहनीय है। किन्तु मुझे दुःख है कि मैं इस सुझावको स्वीकार नहीं कर सकता। 'यंग इंडिया'का अपना निश्चित उद्देश्य है। मैं इसके माध्यमसे उन आदर्शोको, जिनका मैं प्रतिनिधित्व करनेकी कोशिश करता हूँ, उस विशाल जन-समुदायमें सर्वप्रिय बनाना चाहता हूँ जो केवल अंग्रेजी ही जानता है, हिन्दी और गुजराती नहीं। पत्रकी परिधि विस्तृत नहीं करनी है। किन्तु जो तमिल भाषी हिन्दी सीखना चाहते हैं, और उन्हें सीखना चाहिए भी, उनके सम्मुख मैं इसके लिए ट्रिप्लिकेन, मद्रासमें स्थित हिन्दी प्रचार कार्यालयका नाम सुझाता हूँ। यह संस्था एक पत्र भी प्रकाशित करती है, जो हिन्दी, तमिल, तेलगू और अंग्रेजीमें छपता है। इस संस्थाका एकमात्र कार्य यह है कि यह दक्षिणके उन लोगोंमें, जो अपनी देशभक्तिसे प्रेरित होकर हिन्दी सीखना चाहते हैं, हिन्दीका प्रचार करें। ये उत्साह दिखानेवाले सज्जन चाहें तो 'हिन्दी नवजीवन' का भी उपयोग कर सकते हैं, क्योंकि उसमें 'यंग इंडिया' और गुजराती 'नवजीवन 'के मुख्य-मुख्य लेख तथा टिप्पणियाँ अनुवादित रहते हैं।

बिहारियोंके लिए

मेरी आगामी बंगाल यात्रासे बिहारमें जोरदार आशाएँ पैदा हो गई हैं और पत्र-लेखकोंने मुझसे अनुरोध भी किया है कि मैं अपने बिहारके दौरे में उनके स्थानोंको