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एक अपील

सरकारसे भी शराबकी दूकानें बन्द कर देनेका अनुरोध किया जाये। शायद कोई कहे कि यह तो बड़ा जबरदस्त हुक्म दे दिया है; यह भी कहा जा सकता है कि शराबखोरी बन्द करनेकी सारे राष्ट्रकी ओरसे की गई कोशिश बुरी तरह असफल हो चुकी है, ऐसी हालतमें मुट्ठीभर असहाय लोगोंकी बेकार प्रार्थनासे क्या होगा? इसमें शक नहीं कि यह दलील काफी जोरदार है। लेकिन इन दोनों कोशिशोंका रूप जुदा-जुदा है। १९२१ की कोशिश असहयोगियों की थी और वह ब्रिटिश सरकारके खिलाफ थी। असहयोगी उसके हाथसे अधिकार छीन लेनेपर तुले हुए थे। फिर वह उन लोगोंकी ओरसे की गई कोशिश थी जो खुद शराबकी दूकानोंके शिकार नहीं थे। पर अब यह प्रार्थना उन लोगोंकी तरफसे की जा रही है जो खुद ही इस लतके चंगुलमें फँसे हुए हैं। यह निर्बल लोगोंकी सत्ताधारियोंसे प्रार्थना है। यह केवल ब्रिटिश सरकारसे ही नहीं बल्कि उससे सम्बन्ध रखनेवाली तमाम सरकारोंसे की गई है। वे लोग असहयोगी नहीं हैं। वे सहयोग या असहयोगका फर्क नहीं जानते। वे बेमनसे लगभग अनजाने ही और कभी-कभी तो जोरो-जुल्मके डरसे औरोंके लिए काम कर-करके मरते हैं। वे नहीं जानते कि स्वराज्य क्या चीज है? उनके लिए तो स्वराज्य है--शराबखोरी छोड़ देना और उनके बीचसे शराबकी दूकानोंके रूपमें शराब पीनेका प्रलोभन हटा दिया जाना। इसीलिए उनकी यह प्रार्थना दया-धर्मपर आधारित है और इसलिए उसे न मानना मुश्किल होगा।

अध्यक्षके नाते मैं उनके उस प्रस्तावको, जो भिन्न-भिन्न सरकारोंके नाम पास किया गया है, कार्यान्वित करनेके लिए बाध्य हूँ। ब्रिटिश सरकारसे यह प्रार्थना धारासभाके सदस्योंकी मार्फत ही की जा सकती है। धारासभाके सदस्य शराबकी आमदनीको ठोकर मार सकते हैं, फिर उन्हें शिक्षा विभागके लिए धन न जुटा पानेकी जोखिम ही क्यों न उठानी पड़े। मैं उन्हें दावत देता हूँ कि वे आकर अपनी आँखों देखें कि एक समूची जाति इस लतके बदौलत किस तरह बरबाद हो रही है। अगर वे अपने इन देश-भाइयोंका उद्धार करना चाहते हों, तो उन्हें इतना साहस तो प्रदर्शित करना ही होगा।

पर बड़ौदा, धरमपुर और वांसदा राज्योंकी बात दूसरी है। यदि वे चाहें तो सहज ही शराबकी दूकानें बन्द करके अपने प्रजाजनोंको तथा खुद अपनेको विनाशसे बचा सकते हैं। 'खुद अपनेको'-- इस सर्वनामका प्रयोग मैंने जानबूझकर किया है। क्योंकि छोटी रियासतोंमें लोगोंका बड़ी तादादमें तहस-नहस हो जाना खुद रियासतोंका तहस-नहस हो जाना है। क्या वे उन लोगोंकी प्रार्थनापर ध्यान न देंगे जो खुद अपनी लतसे अपनी रक्षा करनेके लिए सहायताकी याचना कर रहे हों?

और अब शराबके पारसी दूकानदारोंके विषयमें। मैं जानता हूँ कि उनके लिए यह रोटीका सवाल है। लेकिन उनकी जाति दुनियाकी एक बड़ी उद्योगशील जाति है। वे बुद्धिमान और उद्यमी हैं। वे बड़ी आसानीसे अपने निर्वाहका दूसरा अच्छा पेशा खोज ले सकते हैं। अबतक कई लोगोंने बुरे पेशोंको छोड़कर अपने समाजकी नैतिक उन्नतिके अनुकूल पेशा और काम अख्तियार किया है। मैं पारसियोंसे यह बात कहनेका हक रखता हूँ, क्योंकि मैं उन्हें जानता हूँ और उन्हें चाहता हूँ। मेरे कुछ अच्छे