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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अच्छे साथी पारसी रहे हैं और अब भी हैं। उन्होंने भारतके लिए बहुत-कुछ किया है। उन्होंने देशको दादाभाई और फीरोजशाह मेहता दिये हैं। और फिर जो ज्यादा देते हैं उन्हींसे तो और पानेकी उम्मीद की जाती है। शराबके पारसी दुकानदारोंको सुधार आन्दोलनमें दखल देकर खलल डालनेके बजाय (यदि उनपर लगाये इल्जामको सही मानें तो) खुद आगे आकर इस सुधार कार्यका श्रीगणेश करना चाहिए।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २२-१-१९२५

१२. पत्र: फूलचन्द शाहको

दिल्ली जाते हुए
पौष बदी १३ [२२ जनवरी, १९२५][१]

भाई फूलचन्द,[२]

तुम्हारा पत्र मिला। इस बार बढवानमें कुछ घंटे तो अवश्य ठहरूँगा ही।

तुमने पट्टणी साहबके सम्बन्धमें जो-कुछ लिखा है, यदि वह सत्य हो तो दुःखजनक बात है। मैने तो उनके सम्बन्धमें इस आशयका आक्षेप सबसे पहले भावनगरमें सुना था, किन्तु मैंने उसपर ध्यान नहीं दिया था। किन्तु मैं तुम्हारे लिखेको उस तरह दरगुजर नहीं कर सकता। किन्तु मैं तुमसे पूछता हूँ कि क्या तुम्हारी इस बातकी जानकारीका आधार कोई प्रत्यक्ष प्रमाण है? यदि तुमने यह बात स्वयं नहीं देखी तो फिर किस प्रकार जानी? यह व्यभिचार किस प्रकारका है; मैं यह जाननेकी जरूरत इसलिए मानता हूँ कि श्री पट्टणीके सम्बन्धमें मेरा विचार बहुत अच्छा रहा है और मुझपर उनकी छाप बहुत अच्छी पड़ी है।

व्यभिचारी अधिकारी या राजाके यहाँ न ठहरना चाहिए, तुम्हारा यह विचार ठीक नहीं है। हम संसार-भरके काजी कैसे बन सकते हैं? तुम जानते हो कि जिन लोगोंके यहाँ ठहरना होता है, उनपर अनेक प्रकारके आक्षेप सुनने में आते हैं। इनमेंसे कुछ लोगोंपर किये हए आक्षेप सच्चे होते हैं, मैं यह भी जानता है। इन्हीं कारणोंसे लोग निर्जन वनमें जा बसते हैं। किन्त हमें जबतक समाजमें रहना है तबतक जैसा तुम चाहते हो वैसा व्यवहार नहीं किया जा सकता।

मैं यह बात व्यावहारिक दृष्टिसे नहीं कहता, बल्कि पारमार्थिक दृष्टिसे कहता हूँ। जो हमें ठहराये, हमें उसके यहाँ ठहरना चाहिए, यही धर्म है। किन्तु यदि हम यह देखें कि कोई हमें ठहराकर उससे अपनी अपवित्रताके लिए समर्थन प्राप्त करनेका प्रयत्न करता है तो हमें ऐसे लोगोंके यहाँ नहीं ठहरना चाहिए।

 
  1. यह पत्र जनवरी १९२५ में गांधीजीने अपने काठियावाड़के दौरेके तुरन्त बाद लिखा था।
  2. सत्याग्रहाश्रमके सदस्य। काठियावाडके एक राजनीतिक और रचनात्मक कार्यकर्ता।