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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

भी हो सकता है। कौन नहीं जानता कि इन पिछले चार सालोंसे संख्या-बलके प्रश्नको लेकर हम कितनी बार परेशान हुए है? हाँ, उस अवस्थामें संख्याकी शक्ति अजेय हो सकती है, जब सब लोग अनुशासन-बद्ध होकर एकतासे काम करें। पर जब एक आदमी इस ओर खींचता हो और दूसरा उस ओर या यह भी न जानता हो कि उसे किधर खींचना चाहिए, तब संख्या-बल आत्मविनाशक शक्ति बन जाती है।

मैं इस बातका पूरा कायल हो चुका हूँ कि जबतक हममें एकदिली, यथोचित व्यवहार, सविवेक सहयोग और अपेक्षित कार्य करनेकी तैयारी, ये गुण विकसित न होंगे, तबतक कांग्रेस सदस्योंकी संख्या कम रहने में हमारी भलाई है। सौ कपूतोंसे एक सपूत अच्छा होता है। सौ कौरवोंके लिए पाँच पाण्डव भारी सिद्ध हुए थे। ऐसा कितनी ही बार हुआ है कि जब चुने हुए कुछ सौ सुनियन्त्रित सैनिकोंकी सेनाने असंख्य अनियन्त्रित लोगोंके समुदायोंको पराजित कर दिया है। सदस्य चाहे थोड़े हों, पर वे कांग्रेसकी शर्तोंका पूरा पालन करनेवाले हों तो अच्छा काम करके दिखा सकते हैं। इसके विपरीत, सम्भवतः नाम-मात्रके १० लाख सदस्य भी किसी कामके न होंगे। मैं यह कहकर यह नहीं जताना चाह रहा हूँ कि अब जो सदस्य हमारे रजिस्टरमें दर्ज हैं वे पक्के हैं या कमसे-कम पहले सदस्योंसे पक्के हैं। इसकी तसदीक तो इस सालके अन्तमें हो सकेगी।

पर मैं जो बात आपके मनमें बैठाना चाहता हूँ वह यह है कि हम अपनी आवश्यकताको समझ लें। हम सचमुच चरखेके स्थायी महत्त्वको मानते हैं या नहीं? यदि हाँ, तो हमें उसे अपना लेना चाहिए; फिर चाहे, हमारी संख्या कम हो या अधिक। स्वराज्यके लिए हम अस्पृश्यता निवारणकी आवश्यकताके कायल हैं या नहीं? यदि हैं, तो फिर हमें हार नहीं माननी चाहिए---भले ही हम पिस जायें। हमारा इस बातपर विश्वास है या नहीं कि हिन्दू-मुस्लिम एकता स्वराज्य प्राप्तिके लिए परम आवश्यक है? यदि ऐसा हो तो फिर हमें उसे प्राप्त करनेके लिए बहुत-कुछ गँवानेके लिए तैयार होना होगा। हम बराय नामकी एकतासे सन्तुष्ट न हों--हमें एकता स्थापित करनी है तो वह सच्ची एकता ही होनी चाहिए।

पर कुछ मित्र कहते हैं: "इसमें राजनैतिक बात तो कुछ भी नहीं है। इसमें सरकारसे टक्कर लेनेका कोई कार्यक्रम नहीं है।" इसपर मेरा कहना है कि जबतक हम इन बातोंको हासिल न कर लें तबतक हम सरकारसे कारगर लड़ाई नहीं लड़ सकते। इसपर कुछ लोग कहते हैं, "पर स्वराज्य प्राप्त होनेतक तो हम इनमें से किसी भी कामको पूरा न कर सकेंगे।" इसपर मेरा उत्तर यह है,--सरकारके खुले या छिपे विरोध या उदासीनताके होते हुए भी हमें इन बातोंको पूरा करनेकी योग्यता प्राप्त करनी ही होगी। मेरे नजदीक तो इन कामोको पूरा करनंका अर्थ आधी लड़ाई जीत लेना है।

वे पूछते हैं, "तब आप स्वराज्यवादियोंके कार्यक्रमके बारे में क्या कहते हैं।" हमें अपनी भीतरी शक्ति बढ़ानेके इस कार्यक्रमके साथ-साथ उस कार्यक्रमको भी जरूर चालू रखना चाहिए। स्वराज्यवादी कांग्रेसके अभिन्न अंग है। वे सुयोग्य हैं, जागरूक है और समयकी आवश्यकताके अनुसार अपनी नीति-रीति बदलते रहेंगे। उस कार्य