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गुण बनाम गिनती

क्रममें जिन लोगोंकी अभिरुचि हो, उन्हें उसको भी चलाना चाहिए। पर वे भीतरी कामको न भूल जायें। यदि १२,००० नहीं, तो २००० स्त्री-पुरुष भी इस रचनात्मक कार्यक्रममें उत्साहपूर्वक लग जानेके लिए तैयार कर लिये जायें तो हालत तुरन्त बदल जायेगी। मैंने अपनी तमाम यात्राओंमें देखा है कि अच्छे साहसी, ईमानदार, स्वार्थ-त्यागी, स्वावलम्बी और स्वयं अपने में और अपने काममें विश्वास रखनेवाले कार्यकर्त्ताओंकी बड़ी कमी है। फसल तो निश्चय ही तैयार है, पर काटनेवाले मजदूर ही कम हैं।

मद्रासकी बात है। श्रीयुत श्रीनिवास आयंगार तथा मैं एक सभामें गये थे। लोगोंमें अथाह उत्साह था। हम दूसरी सभामें वक्तपर पहुँचनेके लिए जल्दी कर रहे थे। परन्तु मेरे ये 'प्रशंसक' मुझे एक गलीमें ले जानेका आग्रह कर रहे थे; वह स्थान मेरे कार्यक्रममें न था। श्री आयंगारने और मैंने कहा, समय नहीं है। श्री आयंगारने मेरी अस्वस्थताकी बात भी सामने रखी, परन्तु सब व्यर्थ। यही कहना ठीक होगा कि वे हमारी गाड़ी घसीटे लिये जा रहे थे। हम दोनोंने उस समय इस बातको अनुभव किया कि ये लोग हमारे उद्देश्यमें सहायक नहीं, बल्कि निश्चय ही बाधक है। बात तभी बनी, जब मैंने अपनी मर्जी चलाई, आगे बढ़नेसे इनकार किया, मोटरसे उतर ही पड़ा और लोगोंसे कहा कि आप मुझे बलात् उठाकर ले जाना चाहें तो भले ही ले जायें। संख्या-बलके खतरेका यह प्रत्यक्ष उदाहरण है। मैं अपने अनुभवसे ऐसे बीसियों उदाहरण दे सकता हूँ। लोगोंका हेतु अच्छा था; परन्तु वे विवेकहीन और विचारहीन थे। संसारमें ऐसी कितनी ही माताएँ हैं जो सद्हेतु और सद्भाव होते हुए भी अपने बच्चोंको नशीली चीजें खिला-पिला देती हैं, जिनसे वे चल बसते हैं।

हमें आजकी हालतमें उत्तेजना और जोशकी जरूरत नहीं है; बल्कि शान्तिके साथ चुपचाप रचनात्मक काम करनेकी जरूरत है। हाँ, यह सच है कि यह काम श्रम-साध्य है, बहत कठिन है। परन्तु वह हमारी शक्तिके बाहर नहीं है। इसके लिए ज्यादा वक्तकी जरूरत नहीं है। यदि हमारी प्रगतिमें कोई बात बाधक है तो वह है हमारी अनिश्चितता। परेशानीकी बात यह है कि हम केवल हाँ कर देते काम नहीं करते। इसीलिए मैं तो गुणका और अकेले गुणका ही समर्थक हूँ। ऐसी अवस्थामें जबतक अ० भा० कांग्रेस कमेटीकी बैठककी माँग न की जाये, तबतक मैं उसका आयोजन न करूँगा। मौजूदा कार्यक्रम इसीलिए तैयार किया गया है कि वे गुण हममें आयें, और जबतक यह कार्यक्रम मौजूद है तबतक मैं तो कांग्रेस कार्यकर्त्ताओंको यही सलाह दूँगा कि वे अपनी सारी शक्ति उसीको सफल बनाने में लगायें, जिससे यदि सम्भव हो तो सालके अन्तमें हमारे पास आवश्यक गुणोंसे युक्त स्त्री-पुरुषोंका एक ठोस दल हो जाये, फिर उनकी संख्या चाहे कितनी ही कम क्यों न हो।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ३०-४-१९२५
२६-३६