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पत्र: फूलचन्द शाहको

किन्तु यह तो अपवाद हुआ। तुम या मैं मानसिक व्यभिचार करनेपर एक दूसरेके यहाँ ठहरते हैं या नहीं?

इस पापमय संसारमें ऐसा निष्पाप कौन है जो ऊँचे आसनपर बैठकर दूसरोंको देख-देखकर हँसता रहे? जैसा तुम्हारा खयाल है वैसा प्रमाणपत्र मैं किसीको भी नहीं देता। यदि कोई प्रसिद्ध वेश्या चरखा चलाये तो मैं उस हदतक उसकी भी सराहना अवश्य करूँगा। इससे कोई यह न मानेगा कि मैंने उसे पवित्रताका प्रमाणपत्र दे दिया है।

"जड़-चेतन, गुण-दोषमय, विश्व कीन्ह करतार।

संत-हंस गुण गहहिं पय, परिहरि वारि विकार।।

हमारा धर्म तो गुणको देखना और सराहना है। क्या संसार ऐसा है कि प्रमाणपत्रोंसे धोखा खा जाये? मैंने पट्टणी साहबको पवित्रताका प्रमाणपत्र तो कभी नहीं दिया। किन्तु मेरा मन उनको ऐसा प्रमाणपत्र देनेका हुआ था। त्रापजमें[१] मुझे उनकी सरलता, उनका गम्भीर ज्ञान और दृढ़ता आदि गुणोंको देखकर हर्ष और आश्चर्य हुआ था। किन्तु यदि वे फिर भी अपवित्र हों तो उनकी पवित्रताके सम्बन्धमें मेरी जो धारणा बनी है, मुझे वह बदलनी होगी। तुम्हारा पत्र मेरे लिए भविष्यमें उपयोगी होगा। जो-कुछ हुआ है उसे तो ठीक ही हुआ मानता हूँ। पट्टणी साहब व्यभिचारी हैं, यदि मैं इस बातपर विश्वास भी करने लगूँ तो भी मैं जब सार्वजनिक कार्यसे भावनगर जाऊँ और वे मुझे राज्यकी अतिथिशालामें ठहरायें तो मैं वहाँ ठहरूँगा। अपने घर ठहरायें तो वहाँ भी। गोंडल नरेश अपवित्र हैं इस बातपर मेरा एक हद तक विश्वास है। किन्तु यदि वे मुझे अपने यहाँ ठहरायें तो मैं वहाँ अवश्य ठहरूँ और फिर भी मैं यह नहीं समझूँगा कि मैं कोई पाप कर रहा हूँ। मेरा असहयोग पापसे है, पापीसे नहीं। डायरशाहीसे है, डायरसे नहीं।

मुझे लगता है कि मैं तुमको जो बात समझाना चाहता था शायद अब भी पूरी तरह नहीं समझा सका हूँ। किन्तु इतना समझनेका प्रयत्न करना। दूसरी बात यहाँ आकर पूछ जाना। यदि पत्र लिखकर पूछना चाहो तो पत्र लिखना। अहिंसा धर्म बहुत कठिन है। वह खांडेकी धारसे भी तीक्ष्ण है। उसपर आचरण करनेके लिए करुणाकी आवश्यकता है। तुलसीदासजीने भी अपने आपको परम पापी माना था। भक्त सूरदासने भी कहा है, "मो सम कौन कुटिल खल कामी।"

बापूके आशीर्वाद

मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू. २८२६) से।

सौजन्य: शारदाबहन शाह

 
  1. भावनगरसे १७ था १८ मील दूरका एक गाँव।