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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हिन्दू-मुसलमानका वैमनस्य। इस प्रकार तो हर देशके माथे कोई-न-कोई कलंक होता है, जिसे उसे धोना पड़ता है।

इस प्रकार क्रान्तिकारी अनुभव करेगा कि वह संसारव्यापी व्याधिके इस आश्चर्यजनक उपचारका प्रचार करके कहीं अधिक उपयोगी काम कर सकता है। इस प्रकार वह अपनी और अपने देशभाइयोंकी ही सेवा नहीं करता बल्कि सारे संसारकी सेवा करता है।

आत्मशुद्धि कर लेनके बाद और स्वयं आत्मनिर्भर बन जानेके बाद, फिर कौन-सी शक्ति है जो आपपर कोई कर लगा सके या अन्य प्रकारसे आपकी इच्छाके विरुद्ध आपसे धन वसूल कर सके? शासित जनता सहयोग न करे तो उसपर कोई भी शासन नहीं कर सकता। अभी हम शासित लोगोंमें शुद्धता नहीं है और आत्म-निर्भरता नहीं है। लेकिन हम जल्दी ही शुद्ध और आत्मनिर्भर हो जायेंगे। अहिंसात्मक असहयोगका वास्तविक अर्थ यही है। आप अपने अन्तरात्माके अतिरिक्त अन्य किसीसे भी न डरें। आप विदेशियोंपर लुक-छिपकर बम क्यों फेंकते हैं? आप बाहर आइए और उनसे साहसपूर्वक कहिये कि हम आपको बड़ी हदतक अपनी दुर्बलताओंके लिए जिम्मेदार मानते हैं। यदि आप जेल भी भेज दिये जायें तो डरें नहीं। आप उनसे यह भी कह दें कि आप उन्हें जितना दोषी ठहराते हैं, उतना ही अपने-आपको भी। इस तरह आप अपना खुदका और जिसे आप अपना शत्रु मानते हैं उसका भी भला करेंगे।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ३०-४-१९२५

३२४. भाषण: नागपुरमें

नागपुर
३० अप्रैल, १९२५

जिस गाड़ोमें महात्माजी कलकत्ता जा रहे हैं, वह गाड़ी सुबह ठीक ९.२५ बजे 'महात्मा गांधीकी जय'के उच्चघोषके बीच यहाँ पहुँची। सिख स्वयं सेवक हाथोंमें नंगी तलवारें लिए महात्माजीको मंचतक पहुँचा गये। महात्माजीने श्रोताओंसे मौन रहनेकी प्रार्थना करने के बाद एक छोटा-सा भाषण दिया। उन्होंने कहा कि यद्यपि मुझे आपसे मिलकर बड़ी प्रसन्नता हुई, फिर भी यह देखकर मेरा हृदय अन्दर-ही-अन्दर जल रहा है कि आपमें से बहुत कम लोग शुद्ध खद्दर पहने हैं। जबतक आप लोग खद्दर नहीं पहनते, जबतक सभी वर्गके लोग अर्थात् सिख, पारसी, हिन्दू, मुसलमान और दूसरे सभी मिलकर दृढ़ताके साथ एक नहीं हो जाते और जबतक अस्पृश्यताका अभिशाप