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वस्तुस्थिति सूचित करनेवाले आँकड़े

मिटा नहीं दिया जाता, तबतक स्वराज्य मिलना असम्भव है। मैं नागपुर के लोगोंसे अपील करता हूँ कि वे वास्तविक हिन्दू-मुस्लिम एकता पैदा करें और कताईको अपनायें।

इस भाषणके बाद, नगर कांग्रेस कमेटीके मन्त्रीने महात्माजीके सम्मुख नगरके कार्यकी रिपोर्ट रखी। महात्माजीने १० बजे के करीब नागपुरसे प्रस्थान किया।

[अंग्रेजीसे]
बॉम्बे क्रॉनिकल, १-५-१९२५

३२५. वस्तुस्थिति सूचित करनेवाले आँकड़े

[३० अप्रैल, १९२५][१]

ये टिप्पणियाँ कलकत्ताकी कष्टकर यात्राके दौरान लिखी जा रही हैं। चूँकि जेलसे रिहा होनेके बाद मैं पहली बार मध्य प्रान्तमें होकर निकल रहा है, इसलिए हर स्टेशनपर जो उत्सुक जनसमुदाय मुझे देखने आता है उससे मुझे परेशानी होती है और मेरे थके-माँदे शरीरको विश्राम नहीं मिलता। साफ दिखता है कि लोगोंने खद्दर त्याग दिया है। सर्वत्र खादीकी सफेद टोपियाँ दिखाई दें, इसके बजाय मुझे सर्वत्र लगभग सभीके सिरोंपर काली विदेशी टोपियाँ ही दिखाई देती हैं, जिन्हें देखकर संताप होता है। एक मित्रने दुःखके साथ मुझसे कहा कि हजारमें मुश्किलसे एक आदमी होगा जो आदतन खादी पहनता हो। मैं इस रास्तेमें सर्वत्र यह खटकनेवाली बात देख रहा हूँ। तब वह हजारमें एक मनुष्य सराहनीय है जो भारी विघ्नबाधाओंके होते हुए भी खादीके प्रति निष्ठावान् बना हुआ है। यह खादीके प्रति विद्रोह नहीं तो उदासीनता अवश्य है। इसे देखकर खादीके प्रति मेरी श्रद्धा और भी बढ़ जाती है।

इस दुःखद सत्यका पूरा प्रमाण भी मिला नागपुरमें; प्रान्तके उस केन्द्र में जहाँ कलकत्तेके अहिंसात्मक असहयोगके प्रस्तावकी पुनः पुष्टि की गई थी। स्टेशनपर विशाल भीड़ थी। कांग्रेसके अधिकारियोंने स्टेशनके बाहर एक सभाका आयोजन भी किया था। तेज धूप पड़ रही थी। भयंकर कोलाहल हो रहा था। किसीको किसीकी बात समझमें आना तो दूर, सूनाई भी नहीं देती थी। स्वयंसेवक तो थे, परन्तु उनमें नियम-निष्ठा बिलकुल नहीं थी। मेरे लिए जानेका कोई रास्ता नहीं रखा गया था। मैंने आग्रह किया कि इस आध घंटे में जबतक गाड़ी स्टेशनपर खड़ी होगी, मुझे सभा स्थानमें जाना है तो मेरे लिए रास्ता बनाया जाये। रास्ता मुश्किलसे बनाया गया। मैं किसी तरह, बचते-बचाते, उसमें से गुजरा। मुझे सभा-मंचपर पहुँचनेमें पाँच मिनिट लगे। यदि भीड़ सब तरफसे मेरी ओर न बढ़ती आती तो मैं वहाँ आधे

 
  1. इसमें कलकत्ताकी यात्राका उल्लेख होनेसे पता चलता है कि यह नागपुरमें रुकनेके बाद ३० अप्रैलको लिखा गया होगा। गांधीजी १ मईको सुबह कलकत्ता पहुँचे थे।