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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पहुँच सकता था। मुझे अपना सन्देश सुनानेमें एक मिनिटसे ज्यादा वक्त नहीं लगा। लौटनमें जानेसे भी ज्यादह वक्त लगा; क्योंकि अब तो भीड़ बिलकुल विवेकशून्य हो गई थी। अब वे मेरे प्रति अपने प्रेमके कारण अन्धे हो रहे थे। लोगोंने जयके नारोंसे आकाश गुँजा दिया। मेरी हालत उस कोलाहल, धूल और घुटनको सह सकने लायक नहीं थी। मैं अपने हृदयमें उस जगन्नियंतासे यह प्रार्थना कर रहा था---हे भगवन्, मुझे इस प्रेमसे मुक्त करो! मैं सही सलामत गाड़ीमें पहुँच गया। गाड़ी इतनी लेट चल रही थी कि मनमें झुँझलाहट पैदा होती थी। मैं गाड़ीके दरवाजेमें खड़ा हो गया, इस आकांक्षा और आशासे कि लोग एक क्षणके लिए गुल-गपाड़ा बन्द कर देंगे तो मैं उनसे कुछ कहूँगा। कांग्रेसके अधिकारियोंने और एक डील-डौलवाले अकालीने भीड़को शान्त करनेका प्रयत्न किया, परन्तु सब व्यर्थ। लोग मेरी बात सुनने नहीं आये थे। वे तो मेरे दर्शन करने आये थे। वे मेरे दर्शन हर्षविह्वल होकर कर रहे थे। परन्तु उनका यह हर्ष मेरे लिए व्यथा ही था। जबानपर तो मेरा नाम और सिरपर काली टोपी। कैसा भीषण विरोध? कितना असत्य? इस भीड़को साथ लेकर मैं स्वराज्यकी लड़ाई नहीं लड़ सकता। फिर भी, मैं जानता हूँ कि मौलाना शौकत अली कहेंगे--जबतक उनमें आपके प्रति ऐसा प्रेम है, तबतक आ ही वह प्रेम अन्धा हो। मुझे ऐसा यकीन नहीं है और इसलिए मेरा हृदय वेदनासे भरा हुआ था।

आखिरकार लोगोंने मेरी बात सुनी। मैंने उनसे उनकी काली टोपियाँ माँगी। उन्होंने इसकी प्रतिक्रिया तुरन्त दिखाई, परन्तु वह उदार न थी। मेरा खयाल है कि उस विशाल जन-समुदायमें से १०० से अधिक लोगोंने अपनी टोपियाँ न फेंकी होंगी। उनमें से चार टोपियाँ ऐसी थीं जिन्होंने उन्हें स्वयं नहीं फेंका था। उन लोगोंने उन्हें वापस माँगा, और वे उन्हें तत्काल दे दी गई। इस दृश्यसे मुझे दो शिक्षाएँ मिलीं; एक यह कि यदि कार्यकी उचित व्यवस्था हो तो लोगोंसे विदेशी कपड़ा या मिलोंका कपड़ा छुड़वाया जा सकता है। और दूसरी यह कि ऐसे लोग भी हैं जो अब भी दूसरोंकी टोपियाँ उतारकर फेंक देते हैं। इसे कोई साधारण जबरदस्ती कह सकता है। लेकिन खादी पहननेके मामलेमें या दूसरी बातोंमें भी जबरदस्तीसे काम नहीं लिया जाना चाहिए। जो लोग खादी पहनते हैं वे उसे या तो स्वेच्छासे पहनें या कतई न पहनें।

परन्तु स्थितिपर सबसे अधिक प्रकाश डालनेवाली बातें तो मुझे उन आँकड़ोंसे मालूम हुई जो वहाँके कामकाजी कांग्रेस अधिकारियोंने मुझे देने के लिए तैयार किये थे। वे आँकड़े वहाँकी कांग्रेसके कार्यकी सच्ची, सीधी और बिना रंगी कहानी कहते हैं। एक जगह प्रान्तीय कांग्रेस कमेटीके कामोंकी जानकारी दी गई है। पिछले मार्च में उसके सदस्योंकी संख्या २०४ थी; जिनमें से ११४ स्वयं कातनेवाले थे और ९० ने औरोंका काता सूत दिया था। अप्रैलमें सदस्योंकी संख्या घटकर १३२ तक रह गई जिनमें से स्वयं कातनेवाले ८० थे और दूसरे ५२। इस तरह एक ही महीनेमें दोनों प्रकारके सदस्योंमें भारी कमी हो गई। अब देखना चाहिए कि आगे क्या होता है। कमेटीकी रिपोर्ट है कि प्रान्तमें ४ राष्ट्रीय पाठशालाएँ चल रही हैं और अछूतोंके