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वस्तुस्थिति सूचित करनेवाले आँकड़े

लिए स्व० हरिशंकर व्यासके [१] न्यासियोंकी ओरसे ५,०००) दान मिला है। अछूतोद्वारकी योजना तैयार करनेके लिए एक उपसमिति बनाई गई है। यह भी कहा गया था कि पण्डित मोतीलाल नेहरू और मौ० अबुल कलाम आजादकी कोशिशोंसे अब वहाँके हिन्दू और मुसलमान परस्पर बहत ही शान्तिपूर्वक रह रहे हैं।

दूसरी जगह नागपुर नगर कांग्रेस कमेटीके कामोंका संक्षिप्त ब्यौरा है। उसमें लिखा है कि अगस्त १९२४ में १,१३३ सदस्य थे। मार्च १९२५ में संख्या इस प्रकार थी:

कुल
३७
१०७
७०

अप्रैलमें इतनी रह गई:

२९
५९
३०

सिर्फ एक ही महीनेमें सूत भेजनमें नागा करनेवालोंकी संख्या ४८ रही।

चालू चरखोंकी संख्या 'करीब' ४० है। सूत कोई ६०-७० हजार गज हर माह निकलता है। सूतका औसत अंक १० से १४ है। हाथ-कते सूतका इस्तेमाल एक भी करघा नहीं करता।

एक खादी-भण्डार है जिसमें कोई २००) की खादी प्रति मास बिकती है।

रिपोर्टमें लिखा है, 'अफीम और शराबके बारेमें कोई जानकारी नहीं दी जा सकती।' उसके बाद यह बहुत ही संक्षिप्त और सच्चा विवरण इस प्रकार समाप्त किया गया है:

पूर्वोक्त अंकोंसे कताई-सदस्यताका भविष्य अच्छी तरह मालूम हो जाता है। खुद कातनेवाले अधिकांश सदस्य अपरिवर्तनवादी है। 'ख' श्रेणीके अधिकांश सदस्य स्वराज्यदलीय हैं। एक भी स्वराज्यदलीय स्वयं सूत नहीं कातता। इस नगरमें अ० भा० कांग्रेस कमेटीके पाँच सदस्योंमें सिर्फ एक सदस्य स्वयं सूत कातता है; एकने खरीदा सूत नियमपूर्वक भेजा है; दोने सूत भेजनमें नागा किया है और एकने मार्चका भी सूत नहीं दिया है और इसलिए वह अब कांग्रेसका सदस्य नहीं है। प्रान्तीय कमेटियोंके कुछ सदस्योंके नाम भी नागा करनेवालों में हैं और उनमें से कुछ तो प्रान्तीय कमेटीमें जिम्मेदार पदोंपर हैं। इससे ज्ञात हो जायेगा कि यह मताधिकार कहाँतक चल सकेगा। अपरिवर्तनवादियोंकी, जिन्हें कताई और खादीमें श्रद्धा है, संख्या क्रमशः कम हो रही है और वे अब इन-गिने रह गये है। नागपुरके स्वराज्यवावी तो इस मताधिकारको छोड़नके लिए उत्सुक हैं और यही हाल मध्यममार्गी या स्वतन्त्र दलवालोंका है, जिनके हाथमें इन दिनों प्रान्तीय कमेटी है।

आशाकी किरण: आम तौरपर लोग उन लोगोंको प्रेम और आदरकी निगाहसे देखते हैं जो नियमपूर्वक कातते हैं और जिन्होंने कांग्रेसके कामके सामने बड़ी-बड़ी नौकरियों और वकालत आदिका मोह छोड़ दिया है।

 
  1. बैतूल जिलेके राष्ट्रीय कार्यकर्त्ता।