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वस्तुस्थिति सूचित करनेवाले आँकड़े

४० से ऊपर शिक्षकोंको लेकर खड़ी हुई थी। यह भारी संख्या घटकर १९२३-२४में १५० रह गई। जुलाई १९२४में वह ५५ तक नीची आ गई अब वह ४५ है और उसमें ८ शिक्षक हैं। कताई निकाल दी गई थी, किन्तु अब वह फिर जारी की गई है। बढ़ईगिरी, जिल्द बंधाई और सिलाई आदि सिखाई जाती है। उसका मासिक खर्च ३५५ रु० है और मासिक आमदनी फीसको मिलाकर १८० रु० है। उसे बैतूलके स्व० हरिशंकर व्यासकी सम्पत्तिसे दानके रूपमें ५,०००) अकस्मात् मिल गये थे।

कहते हैं, उसमें धार्मिक और शारीरिक शिक्षा भी दी जाती है।

संस्थाको अपनी तकनीकी विभागके लिए बतौर पूँजीके १,०००) और पाठशालाको छ: सालतक चलानेके लिए १०,०००) चाहिए।

इस विद्यालयकी दशा भी वैसी ही हुई है जैसी देशके प्रायः अन्य राष्ट्रीय शिक्षालयोंकी हुई है। यद्यपि इसकी राम-कहानी अनुत्साह बढ़ानेवाली मालूम होती है, फिर भी हतोत्साह होनेका कोई कारण नहीं। यदि शिक्षक दृढ़ निश्चयी, सुयोग्य और आत्मत्यागी हैं तो वे अपनी छोटी-सी संस्थाको राष्ट्रीय दृष्टिसे उपयोगी और कारगर बना सकते हैं। आवश्यक शर्तोका, फिर वे कुछ भी क्यों न हों, पालन न करनेवाले शिक्षकोंकी संख्या अधिक होनेका कुछ महत्त्व नहीं है। कुछ भी हो, यदि नागपुर तिलक विद्यालयके शिक्षकोंमें जीवट हो और वे कांग्रेसकी शर्तोका पालन कर सकें तो मैं समझता हूँ कि उसे आर्थिक सहायता मिलने में कोई कठिनाई न होगी। मैं ऐसी किसी संस्थाको नहीं जानता जो धनके अभावमें बन्द हो गई हो; किन्तु मैं ऐसी अनेक संस्थाओंको जानता हूँ जो शिक्षकोंमें आवश्यक गुण न होनेके कारण बन्द हो गई।


मैंने अभी उस विवरणका तो जिक्र ही नहीं किया है, जिसको पढ़कर बहुत अधिक आशा बँधती है। यह उन लोगोंके नामोंकी सूची है जिन्होंने मुझे भेंट करने के लिए सूत काता है। यह सूत सदस्यताके चन्देके सूतके अलावा है। इस सूचीमें ४१ नाम हैं जिनमें से दो नाम संस्थाओंके हैं। इसलिए कातनेवाले व्यक्ति ४१से अधिक हैं। उनमें मारवाड़ी भी हैं और महाराष्ट्रीय भी। ४ पारसी भी हैं। एक मुसलमान और ४ स्त्रियाँ हैं। नामोंकी सचीमें सूतके अंक, वजन, और गजोंमें लम्बाई हर नामके सामने उल्लिखित हैं। सूतकी कुल लम्बाई ७,५३,९७४ गज है। अंक ९६ से ६ तक हैं। अभी मैंने सूतकी जाँच नहीं की है; पर यदि यह सारा बुनने लायक है, तो यह इतना है कि जिसपर गर्व हो सके। और यदि वे तमाम सदस्य चरखेमें सजीव और स्वतन्त्र श्रद्धा रखते हों तो मुझे उचित समयमें सफलता मिलनेके बारेमें निराश होनेका कोई कारण नहीं दिखाई देता।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ७-५-१९२५