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परिशिष्ट

उस पुरानी और प्रतिष्ठित प्रथाको भंग करने का अधिकार दे दे, जिसे त्रावणकोरके उच्च न्यायालयने अपने कई निर्णयोंमें, जिनमें से पहला ५ टी० एल० आर० के मामलेसे सम्बद्ध था, स्वीकृति दी है और जो इस कारणसे इस राज्यके कानूनमें शामिल है।

सरकारका इरादा इस प्रथाके अस्तित्वका औचित्य सिद्ध करने का नहीं है। कोई इसे पूर्वग्रह कह सकता है, कोई अन्धविश्वास। लेकिन इसे जो भी संज्ञा दी जाये, यह प्रथा मौजूद है और हमें इसका ध्यान रखना है। जैसा कि मैंने पहले कहा है, यह धार्मिक विश्वासपर आधारित है, और जैसा कि आप जानते हैं, ऐसे विश्वासोंसे उन लोगोंको बड़ा मोह होता है जो ऐसे विश्वास रखते हैं। भारतके अन्य हिस्सोंमें भी धार्मिक विश्वासोंपर आधारित ऐसी प्रथाएँ मौजूद हैं। उदाहरणके लिए, मद्रास प्रान्तमें अवर्ण हिन्दुओंको उन कुछ एक गलियों और सड़कोंपरसे नहीं गुजरने दिया जाता है, जहाँ सवर्ण हिन्दू लोग रहते हैं। सेलम जिलेमें इस प्रथाको तोड़ने की कोशिश की गई तो दंगा भड़क उठा, जिसमें लोगोंकी जानें गई और मलाबार जिलेमें भी इसके फलस्वरूप सार्वजनिक शान्ति भंग हुई। अवर्ण हिन्दुओंमें भी ऐसी प्रथा है कि एक वर्गके अवर्ण हिन्दू अगर किसी कुएँका स्पर्श कर देते है तो दूसरे वर्गके अवर्ण हिन्दू उसका पानी नहीं पीते। उत्तर भारतमें भी ऐसी प्रथाएँ हैं। जबतक कोई धार्मिक विश्वास या धार्मिक विश्वासोंपर आधारित प्रथा घोर रूपसे अमानवीय न हो तबतक उसमें हस्तक्षेप न करना हरएक सरकारका परम कर्तव्य है। सार्वजनिक शान्तिकी रक्षा करना और स्थितिको यथापूर्व कायम रखना भी सरकारका कर्तव्य है। हरएक सरकारको कार्यपालिकाका यह कर्तव्य है कि वह कोई कानून जिस रूपमें प्रचलित है और जिस रूपमें अदालतें उसकी व्याख्या करती हैं, उस रूपमें उसे कायम रखे और उसका पालन कराये। जैसा कि अतिरिक्त हेड सरकारी वकीलने विधान परिषद्में इस प्रस्तावपर बहसके दौरान कहा है, त्रावणकोर सरकारने यही म किया है और भारतकी अन्य सरकारें भी इसी नीतिका अनुसरण करती हैं।

अब हम वाइकोमकी स्थितिपर किंचित् विस्तारसे विचार करें। मन्दिरके ठीक आसपासकी सड़कें मन्दिरकी निजी सम्पत्ति हैं; वे सार्वजनिक सम्पत्ति नहीं है। इसके विपरीत, जो सड़कें मन्दिरकी ओरको जाती हैं, वे सार्वजनिक सड़कें हैं। लेकिन, एक सर्वमान्य और अत्यन्त पुरानी प्रथाके अनुसार मन्दिरसे एक खास दूरीतक ये सड़कें सीमित अर्थमें ही सार्वजनिक है; अर्थात् ये कुछ एक वर्गोंके ही लोगोंके लिए खुली हुई हैं, राजमार्गकी तरह सभीके लिए नहीं। आसपास कोई ऐसी सार्वजनिक संस्था भी नहीं है जिसके लिए सभी वर्गोंके लोगोंके लिए इन सड़कोंपर से गुजरना जरूरी हो। इस क्षेत्रमें प्रवेश करने पर निषेध लगा रहनेसे वास्तवमें जो एकमात्र असुविधा होती है वह यह कि वाइकोमके एक छोरसे दूसरे छोरतक जाने के लिए उन लोगोंको, जिनपर यह प्रतिबन्ध लगा हआ है, लम्बे और चक्करदार रास्तेसे गुजरना पड़ता है। सरकारने निषिद्ध क्षेत्रकी बगलसे आम जनताके उपयोगके लिए नई सड़कें बनवा

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