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१३. पत्र : रेवाशंकर झवेरीको

पौष बदी १३ [ २२ जनवरी, १९२५][१]

आदरणीय रेवाशंकरभाई,[२]

जैसा आपसे कहा था, मैंने प्रभाशंकरको[३] पत्र न लिखकर कल ही तार दिया है। मैंने उनका पत्र पढ़नेके बाद भाई नानालालसे मिलना ठीक समझा था। वे बारडोलीमें आनेवाले थे, किन्तु नहीं आये। फिर भी वे कल आकर मिल गये; इसलिए प्रभाशंकरको और डाक्टरको[४] भी तार दिया है। मैंने उनको यह लिख दिया है कि चि० चम्पाके नाम एक खासी रकम जमा करा दी जायेगी। मैंने प्रभाशंकरको पत्र भी लिखा है।

तुलसी मेहर[५] कहता था कि रुई धुनने में [शुरूमें] कुछ परिश्रम पड़ता है। किन्तु हाथ बैठ जानेपर तो बिलकुल नहीं पड़ता। धुनकी हल्की भी बनाई जा सकती है। अगर तुम आन्ध्रकी स्त्रियोंकी तरह धुनो तो तनिक भी कठिनाई न होगी।

मोहनदासके प्रणाम

मूल गुजराती पत्र (जी० एन० १२६३) की फोटो-नकलसे।

{{c|१४. भाषण: सर्वदलीय सम्मेलन समितिको बैठकमें[६]

२३ जनवरी, १९२५

श्री गांधीने कहा कि श्रीमती बेसेंटको जैसा डर[७] है मेरा समिति-सम्बन्धी प्रस्ताव उस हदतक नहीं जाता। यह सुझाव तो यह स्पष्ट करने के लिए दिया गया

 
  1. डाकखानेकी मुहरके अनुसार।
  2. बम्बईके एक व्यवसायी और डा० प्राणजीवन मेहताके भाई।
  3. इनकी बेटी चम्पाका विवाह डा० मेहताके बेटे रतिलालले होनेवाला था।
  4. डा० प्राणजीवन मेहता।
  5. साबरमतीके सत्याग्रहाश्रमके एक सदस्य।
  6. नवम्बर १९२४ में बम्बई में हुई बातचीतके फलस्वरूप आयोजित सर्वदलीय सम्मेलन समितिकी बैठक २२ जनवरी शुक्रवारकी शामको वेस्टर्न होस्टल, दिल्ली में हुई थी। गांधीजीने इसकी अध्यक्षता की थी। उन्होंने हिन्दुओं और मुसलमानों तथा सभी राजनीतिक दलों के बीच समझौतेकी रूपरेखाके बारे में सुझाव देने और स्वराज्यकी योजना बनानेके लिए, एक उप-समिति नियुक्त करनेके सम्बन्धमें एक प्रस्ताव रखा था। विभिन्न सम्प्रदायों तथा दलोंके प्रतिनिधियों द्वारा भाषण देकर इस सम्बन्धमें अपनी-अपनी स्थिति स्पष्ट करनेके बाद सम्मेलन शनिवारके दोपहर तकके लिए स्थगित कर दिया गया था।
  7. श्रीमती बेसेंटने प्रस्तावपर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा था कि सम्मेलनका सहसा नये निश्चय करना अनुपयुक्त तो है ही; इससे बड़ी अव्यवस्था भी फैल जायेगी। क्योंकि ये निश्चय बेलगाँव कांग्रेसमें पास किये गये प्रस्तावोंके विपरीत भी जा सकते हैं और इसके फलस्वरूप श्री गांधीको अध्यक्ष पद छोड़ना पड़ सकता है।