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अ० भा० गोरक्षा मंडलके संविधानका मसविदा

है कि कांग्रेसजन नये मताधिकार या कांग्रेसके सिद्धान्तके सिवा और किसी बातको माननेके लिए मजबूर नहीं हैं। इस मताधिकार सम्बन्धी निर्णय या कांग्रेसके सिद्धान्त केवल प्रस्तावित समितिके कुछ सम्भाव्य निर्णयोंके कारण परिवर्तित नहीं किये जा सकते। कांग्रेसजन अपने हेतुको भली-भाँति समझते हैं; वे अपने कार्यक्रमको पूरा करेंगे। किन्तु यदि गैर-कांग्रेसी कांग्रेसमें शामिल हो जाये और कांग्रेसजनोंको यह विश्वास करा दें कि उनके तरीके गलत है तथा मताधिकारमें या कांग्रेस सिद्धान्तमें परिवर्तन करना उचित है तो कांग्रेसका विशेष अधिवेशन बुलानेका वचन दिया जा सकता है। किन्तु वैयक्तिक रूपसे में किसी परिवर्तनको आवश्यकता नहीं देखता।

श्री गांधीने श्री दालवीकी प्रार्थनापर उदारदलीय संघका यह प्रस्ताव पढ़ा, "उदारदल कांग्रेसमें पुनः तभी प्रविष्ट हो सकता है जब (१) कांग्रेस औपनिवेशिक स्वराज्यके अपने घोषित लक्ष्यको प्राप्त करनेके लिए संवैधानिक तरीकोंको अपनाये। (२) जब वह असहयोग तथा सविनय अवज्ञा एवं साथ ही मताधिकारके लिए सूतकी शर्तको भी निश्चित रूपसे दे तथा (३) जब वह विधान सभाओं में केवल स्वराज्य दलको ही अपने मान्य प्रतिनिधि के रूपमें स्वीकार न करे।"

श्री गांधीने यह भी कहा है कि दूसरे राजनीतिक दलोंके सुझाव भी करीबकरीब इसी तरहके हैं।...

[अंग्रेजीसे]
बॉम्बे क्रॉनिकल, २६-१-१९२५

१५. अ०भा० गोरक्षा मंडलके संविधानका मसविदा[१]

[२४ जनवरी, १९२५][२]

अ० भा० गोरक्षा मंडल

उद्देश्य

गोरक्षा हिन्दू जातिका धर्म है फिर भी चूँकि अब हिन्दू समाज गोरक्षाधर्मके पालनकी उपेक्षा कर रहा है, और चूँकि हिन्दुस्तानमें गोवंशका दिन-प्रतिदिन ह्रास होता जा रहा है, इसलिए गोरक्षा धर्मके समुचित पालनके लिए इस अखिल भारतीय गोरक्षा मंडलकी स्थापना की जाती है।

मंडलका उद्देश्य सभी नैतिक उपायों द्वारा गाय और उसकी सन्ततिकी रक्षा करना है।


२६-३
 
  1. गांधीजी द्वारा हिन्दीमें तैयार किया गया मूल मसविदा उपलब्ध नहीं है। देखिए नवजीवन, ८-२-१९२५ में "महादेव देलाईका दिल्लीसे पत्र"।
  2. देखिए "अखिल भारतीय गोरक्षा मण्डल", १६-३-१९२५ और "गोरक्षा", ९-४-१९२५।