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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

'गोरक्षा' का अर्थ गाय और उसके वंशकी निर्दय व्यवहार और वधसे रक्षा करना है। जिन कौमोंमें गोवध अधर्म नहीं माना जाता या गोवध जरूरी माना जाता है, उनपर किसी भी तरहकी जबरदस्ती करना इस मंडलकी मूल नीतिके खिलाफ माना जायेगा।

साधन

यह मंडल नीचे लिखे साधनोंके जरिये अपना कार्य करनेकी कोशिश करेगा:

१. गाय, बैल आदिके प्रति निर्दय व्यवहार करनेवालोंको विनयपूर्वक समझाना। इस विषयमें लेखों, पुस्तिकाओं और व्याख्यानों द्वारा प्रचार करना।

२. जहाँ गाय-बैल बीमार या अशक्त हो जायें और उनके मालिक उनके पालनमें असमर्थ हों, वहाँ ऐसे लोगोंसे इन पशुओंको ले लेना।

३. वर्तमान पिंजरापोलों और गोशालाओंकी व्यवस्थाका निरीक्षण करना, उनके प्रबन्धको अधिक अच्छा बनानेकी दिशामें व्यवस्थापकोंको मदद पहुँचाना और नये पिंजरापोल तथा गोशालाएँ कायम करना।

४. गोशालाओं, पिंजरापोलों या दूसरे साधनों द्वारा आदर्श पशु-संवर्धन करना और सुसंचालित दुग्ध केन्द्रों द्वारा सस्ता और अच्छा दूध सुलभ करना।

५. मरे हुए जानवरोंके चमड़े वगैरहके लिए चर्मालय खोलना और इस प्रकार कमजोर ढोरोंके निर्यातको रोकना या कम करना।

६. चरित्रवान गो-सेवकोंको छात्रवृत्तियाँ देकर गो-सेवाके कामकी तालीम दिलवाना।

७. गोचर-भूमि आदिका जो नाश होता जा रहा है, उसके कारणोंपर विचार करना और उससे होनेवाले हानि-लाभकी जाँच करना।

८. बैलको बधिया करनेकी क्रिया निर्दय क्रिया है; इसलिए पता लगाना कि इसकी आवश्यकता है या नहीं। और बधिया करना जरूरी और उपयोगी मालूम पड़े, तो इस क्रियाके करनेका कोई निर्दोष तरीका खोज निकालना अथवा वर्तमान पद्धतिमें उचित संशोधन करना।

९. मंडलके कामोंके लिए रुपया इकट्ठा करना; और

१०. गोरक्षाके लिए जो अन्य साधन आवश्यक या उचित मालूम पड़ें उनकी योजना करना।

सदस्य

अठारह वर्षसे अधिक उम्रके जो स्त्री-पुरुष इस मंडलका उद्देश्य स्वीकार करें और

(१) जो सालाना पाँच रुपया चन्दा दें, या

(२) जो हर माह इतना समय चरखा चलाने में दें जिसके फलस्वरूप २,००० गज अच्छा सूत हर महीने इस मंडलको भेज सकें, या

(३) जो इस मंडलके लिए प्रतिदिन एक घंटा मंडल द्वारा निर्धारित किया हुआ काम करें, वे इस मंडलके सदस्य हो सकेंगे।

टिप्पणी : जो सदस्य २,००० गज सूत कातकर देनेका जिम्मा लेंगे, उन्हें पूनियाँ मंडलकी तरफसे दी जायेंगी।