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टिप्पणियाँ

वाली रकम आदिका प्रबन्ध करके रखना आवश्यक होगा। इसके सिवाय कुछ ऐसे भी लोग होंगे, जो अपनी ही कपाससे सूत कातेंगे और कुछ ऐसे होंगे जो समिति द्वारा दी हुई कपाससे सूत कातेंगे। इसलिए इन दोनोंका हिसाब अलग-अलग तरहसे रखना जरूरी होगा। इसके सिवाय जो कपास कातनेके काममें आ चुकेगी, उसका हिसाब भी अलग रखना होगा। इस तरह हिसाबकी अधिक बहियाँ रखना जरूरी हो सकता है और इसलिए यह काम धीरज, सोच-विचार और समझके बिना नहीं हो सकेगा।

१०० रुपये के चरखे

एक सज्जनने प्रश्न किया है कि जिन जिलोंने दूसरोंके द्वारा २,००० गज सूत कतवाकर भेजनेकी इजाजत दे रखी है, क्या वे भी उक्त इनामके हकदार हो सकते है। उक्त बात जिस ढंगसे कही गई है उसकी भाषा भले स्पष्ट न रही हो, फिर भी यह इनाम तो उसीके लिए है जो स्वयं कातेगा। 'खादी प्रेमी' सज्जनका इरादा उस जिलेको यह पुरस्कार देनेका नहीं है, जो दूसरोंके द्वारा सूत कतवाकर भेजनेवाले सदस्योंकी संख्यामें सबसे बढ़कर हो। मैं आशा करता हूँ कि इस पुरस्कारके लिए जिलोंमें खासी प्रतिस्पर्धा होगी। १०० रुपयेकी कीमतकी बात नहीं सोचनी है। महत्त्व पुरस्कारका है, उसके मूल्यका नहीं। यदि बोरसद ही यह तय कर ले, तो पूरी शक्ति लगाकर ५,००० (सूत कातनेवाले) सदस्य बना ले सकता है।

किसान परिषद्[१]

सोजिनाके कार्यकर्ताओंने पाटीदारोंकी परिषद् उपर्युक्त नाम देकर बुलाई थी और इसलिए मैं पाटीदारोंकी जगह किसान शब्दका उपयोग करनेका साहस कर रहा हूँ। पुराने नामोंको छोड़कर नये नामोंके पीछे घूमना और पुरानी बातोंको हलका माननेका रिवाज अनुकरणीय नहीं है। पाटीदार कहलाने में कुछ भी विशेष बात नहीं है; किसान शब्द बहुत मीठा और प्यारा है। कहा जा सकता है, सोजित्राके पाटीदार कमसे-कम दो दिनोंके लिए किसान बन गये थे और यह इसलिए कि उन्होंने परिषद्के लिए आवश्यक मददका बोझ अपने ऊपर ले लिया था। किसान तो हमेशा मजदूर है। शरीर-श्रममें ही उसका बड़प्पन है। सोजित्राकी इस परिषद्में छोटे-बड़े सभी पाटीदार सेवा कर रहे थे और इससे उनकी शोभा हो रही थी। परिषद्का मण्डप स्वयंसेवकोंने अपने हाथों तैयार किया था। यह भी स्पष्ट था कि खर्च यथासम्भव कम किया गया है। जो अतिथि प्रतिनिधि इत्यादि आये थे, उन्हें भी परिषद्के कुछ सदस्योंने व्यक्तिगत तौरपर अपने-अपने यहाँ ठहरा लिया था और इसलिए व्यवस्था भी अच्छी हो गई और स्वागत समितिपर भोजन आदिके खर्चका बोझ भी नहीं पड़ा। बड़ौदा सरकारकी ओरसे परिषद्को आवश्यक सुविधाएँ दे दी गई थीं, इसलिए काम सरल हो गया था।

 
  1. इस शीर्षकमें यह और इसके आगेकी टिप्पणियाँ प्रकारान्तरसे २२-२-१९२५ के यंग इंडियामें भी दी गई थी।