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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

प्रार्थना करें कि वह उन्हें प्रतिज्ञा-पालनमें सहायता पहुँचाये। रामनामका जप करें और इसी तरह सोते समय भी। रामनामपर मेरी आस्था तो बहुत वर्षोंसे है। अनेक मित्रोंके लिए रामनाम रामबाणकी तरह सिद्ध हुआ है। वे अनेक आन्तरिक द्वन्द्वोंसे मुक्त हो गये हैं। जो लोग ठीक उच्चारण नहीं कर सकते, द्वादश-मन्त्र भी जिन्हें याद नहीं हो सकता और जिन लोगोंके लिए ईश्वर शब्दका उच्चारण कठिन है, उनके लिए भी 'राम' का उच्चारण सहल होगा। जो श्रद्धापूर्वक 'रामनाम' का जाप करते हैं, मैं मानता हूँ कि वे सदा सुरक्षित हैं। मेरी कामना है कि रामनाम इन भाई-बहनोंको भी फले।

बारडोलीका कर्तव्य

मैं बारडोली जिलेमें होकर लौट आया। वहाँ मुझे पुरानी घटनाओं और पुरानी प्रतिज्ञाओंकी याद आई। मैं दुःखी हुआ। किन्तु आशावादी होनेके कारण मैं निराश तो बेशक नहीं हुआ। इसलिए मैं बारडोलीसे आशा लेकर ही वापस आया हूँ।

बारडोली मनमें धार ले तो बहुत-कुछ कर सकती है। वहाँके पाटीदार दूरंदेश हैं। उनमें से बहुतसे लोग दक्षिण आफ्रिका गये हैं और उन्होंने कष्ट उठाये हैं। यह जिला पैसेकी दृष्टिसे सुखी है। वहाँ उत्तम कपास उत्पन्न होती है। इस जिलेके लिए बहुत मेहनत की गई है। गुजरातके दूसरे जिलोंसे जा-जा कर कार्यकर्ता वहाँ बसे हैं। वहाँ आश्रम बनाये गये हैं और उनमें स्वर्गीय वीर पारसी रुस्तमजीभाई की दी हई रकम लगी है। बारडोली हिन्दुस्तान-भरमें नाम पा चकी है।

बारडोलीके ऐसे पाटीदार क्या करेंगे? वे निश्चय कर लें, तो घर-घर चरखा दाखिल करके, स्वयं सूत कातकर, उसीका बुना हुआ कपड़ा पहनकर विदेशी कपड़ेका बहिष्कार कर सकते हैं। यह सब काम बारडोलीके लिए एक साधारण बात है।

भाई कुँवरजी तथा भाई लक्ष्मीदासने काम शुरू कर दिया है। उन दोनोंके बीच में तय हुआ है कि लोगोंको जरूरत-भर कपास उपलब्ध करेंगे और दूसरोंका कता हुआ सूत बुनवायेंगे। उन्होंने इस तरह कामका बँटवारा कर लिया है। भाई कुँवरजीने २,००० मन कपास इकट्ठी करनेका बीड़ा उठाया है और भाई लक्ष्मीदासने उसे कतवा देनेका। यदि ऐसा हो, तो बारडोली थोड़े ही समयमें कपड़ोंके मामलेमें स्वावलम्बी हो जायेगी। ईश्वर बारडोलीको सफल करे।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २५-१-१९२५