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१८. पत्र: एक जर्मनको

२५ जनवरी, १९२५

शान्ति एवं स्वतंत्रताके लिए संघर्षकी एक शर्त है, आत्मसंयम प्राप्त करना। उसके लिए संसारके सब सुखोंका त्याग कर देना आवश्यक है।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

[अंग्रेजीसे]

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरी से

सौजन्य: नारायण देसाई

१९. मौन-दिवसकी टिप्पणी [१]

२६ जनवरी, १९२५

गुजरातमें कुछ हदतक तो गोरक्षा होती है; किन्तु काठियावाड़ अपवाद है। लेकिन वहाँ भी बहुतसे लोग दुष्कालमें पशुओंको निकाल देते हैं। हमारा पशुओंके प्रति जो व्यवहार है उससे मुझे कदाचित् ही किसी जगह सन्तोष हुआ हो। इसके विपरीत यूरोपमें उनके प्रति व्यवहार शायद ही कहीं असन्तोषजनक दिखाई देगा। अरबमें घोड़ा लगभग पूजा जाता है। वहाँ उसकी सार-सँभाल भी ऐसी ही की जाती है। हम हिन्दुस्तानके लोग गायके प्रति मालूम नहीं इतने निर्दय क्यों हैं। यूरोपमें तो पशु ऐसे होते हैं कि हम देखते रह जायें।

[गुजरातीसे]

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।

सौजन्य: नारायण देसाई

 
  1. गोरक्षा परिषद्में गांधीजी द्वारा दिये गये भाषणकी महादेव देसाईने जो आलोचना की थी, यह टिप्पणी उसके उत्तरमें लिखी गई थी।