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२०. पत्र: मगनलाल गांधीको

दिल्ली
माघ सुदी ३ [२७ जनवरी, १९२५][१]

चि. मगनलाल,

इस पत्र में जो माँग की गई है वह किसी न किसीको पूरी करनी ही चाहिए। जो रुई दे वह सूत ले, यह उचित ही है। इसका मुनासिब बन्दोबस्त कर देना। रुई उस जिलेसे ही मिल सके, पहले तो यही प्रयत्न किया जाना चाहिए।

चि. राधाके साथ बातचीत तो सन्तोषजनक हुई है। वह तो अपने निश्चयपर दृढ़ है। फिर भी उचित यही है कि हम चारों ओर निगाह रखें।


बापूके आशीर्वाद

[पुनश्च:]

अभी दिल्ली में दो-तीन दिन लगेंगे।

मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ६०९२) से।

सौजन्य: राधाबहन चौधरी


२१. पत्र: घनश्यामदास बिड़लाको

[दिल्ली
माघ सुदी ३ [२७ जनवरी, १९२५][२]

भाईश्री घनश्यामदासजी,

आपका पत्र कई दिनोंके बाद मीला।

मेरा किसीपर अत्यंत विश्वास नहि है। परंतु मनुष्य मात्रका विश्वास रखना हमारा कर्तव्य है। हम भी तो दूसरेके विश्वासकी आशा रखते हैं। जब दोनों पक्ष गलती करते हैं तब न्यूनाधिकताका प्रमाण खींचना बहोत मुश्केल हो जाता है। इसलीये मैंने तो एक हि मार्ग सोच लीया है--दुर्जनके साथ भी सज्जनतासे बर्ताव रखना।

 
  1. माघ सुदी ३, १९२५ में २७ जनवरीको पड़ी थी। गांधीजी उस दिन सर्वदलीय सम्मेलनकी बैठकके सम्बन्धमें दिल्ली में मौजूद थे।
  2. देखिए पाद-टिप्पणी १।