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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कोई परिवर्तन हुआ है। महात्मा गांधीने उत्तर दिया कि मैंने ऐसी कोई बात नहीं देखी जिससे मेरा विचार बदलता।

उन्होंने कहा कि इसके विपरीत मेरी मान्यता यह है कि दोनों ही भाषणोंका राष्ट्रके सम्मुख उपस्थित समस्यासे कोई सरोकार नहीं है; क्योंकि मेरी रायमें अध्यादेशके अन्तर्गत जो अधिकार ग्रहण किये गये हैं वे असाधारण अवसरपर ही ग्रहण किये जाने चाहिए और जनताके नियमपूर्वक निर्वाचित प्रतिनिधियोंकी स्वीकृतिके बिना तो कदापि ग्रहण नहीं किये जाने चाहिए। ऐसे मामलों में जहाँ जीवन-मरणका प्रश्न हो--और जिनका प्रजाको स्वतन्त्रतासे सम्बन्ध हो वहाँ अधिकारियोंकी राय किसी कामकी नहीं होती, फिर चाहे वे अधिकारी कितने ही बड़े क्यों न हों।

वस्तुतः महात्मा गांधी इससे भी आगे गये। उन्होंने कहा:

भारतके लिए इस प्रकारकी आग्रहपूर्ण घोषणाएँ नई नहीं हैं। क्या सर माइकेल ओ'डायरने [१] और लॉर्ड चेम्सफोर्डने[२] भी लगभग पूरी संजीदगीके साथ यह नहीं कहा था कि पंजाबमें राजद्रोह तथा षड्यंत्र व्यापक रूपसे फैले है? क्या सर माइकेल ओ'डायरने यह दावा नहीं किया था कि पंजाबमें आम विद्रोहकी स्थिति है। क्या इसे वे सिद्ध कर सकते हैं? अब हम जान गये हैं कि इन वक्तव्योंके समर्थनके योग्य प्रमाण लगभग नहीं था।

महात्मा गांधीने इसलिए इस बातपर प्रसन्नता व्यक्त की है कि जहाँतक अध्यादेशका सम्बन्ध है भारतीय एकमतसे उसकी निन्दा करते हैं और उनको आशा है कि उसके विरुद्ध आन्दोलन दिन-प्रतिदिन जोर पकड़ेगा और इस हदतक जा पहुँचेगा कि वह एक दिन दुर्निवार हो जायेगा।

[अंग्रेजीसे]
बॉम्ब क्रॉनिकल, २८-१-१९२५

२३. कुछ प्रश्नोंके उत्तर

पिछले महीने एक अंग्रेज सज्जनके साथ खुल कर मेरी बातें हुईं। उक्त सज्जनको हिन्दुस्तानकी समस्याओंमें बहुत दिलचस्पी है और वे भरसक उसकी सेवा करने के इच्छुक हैं। उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या इस बातचीतका सार छापा जा सकेगा। मैं इसके लिए तुरन्त सहमत हो गया और उन्होंने इस चर्चामें जो प्रश्न उठाये थे मैने उन्हें लिखकर दे देनेको कहा। उन्होंने प्रसन्नतापूर्वक प्रश्न लिखकर दे दिये। मैं उनका नाम प्रकट नहीं कर रहा हूँ क्योंकि महत्त्व नामका नहीं है। ज्यादा महत्त्व विचारका है, क्योंकि इन दिनों लोगोंमें उन विचारोंके प्रति कुछ दिलचस्पी दिखाई दे रही है। यदि मैं जैसा कि मेरा दावा है, अंग्रेजोंका मित्र हूँ, तो मुझे जरूर उनके

 
  1. पंजाबके लेफ्टिनेंट गवर्नंर, १९१३-१९१९।
  2. भारतके वाइसराय, १९१६-१९२१।