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कुछ प्रश्नोंके उत्तर

मनमें उठनेवाली तमाम शंका-कुशंकाओंका उत्तर धीरजके साथ देना चाहिए। प्रश्नकर्ता मित्रने ये तमाम सवाल अपनी ही तरफसे नहीं किये थे, बल्कि ज्यादातर तो उन अंग्रेजोंकी तरफसे किये थे जिन्होंने ये सवाल असलमें उनसे किये थे।

सवाल और जवाब नीचे दिये जा रहे हैं:

खादी कार्यक्रमको स्वराज्यका साधन माननेके आपके आग्रहका वास्तविक हेतु क्या है?

मैं स्वराज्य सिर्फ अहिंसा और सत्यके द्वारा प्राप्त करना चाहता हूँ। यह तभी मुमकिन हो सकता है जब खादी-कार्यक्रमको सफल बनानेके लिए उसपर अध्यवसायपूर्वक अमल किया जाये। स्वराज्य शान्तिपूर्ण उपायोंसे तभी मिल सकता है जब, किसी बहुत थोड़ी ही अवधिके लिए और बहुत सामान्य कामके लिए ही क्यों न हो, हिन्दुस्तानकी सारी जनता एक मनसे कोई रचनात्मक और उपयोगी काम करे। ऐसा प्रयत्न राष्ट्रके पूरी तरह जागरूक हो चुकनेकी अपेक्षा तो रखता ही है। यह उद्देश्य केवल चरखेके द्वारा ही साध्य हो सकता है। कोई व्यक्ति इसके जरिये ज्यादा नहीं कमा सकता; इसलिए जो अपनी ही सोचता है केवल ऐसे व्यक्तिको इसके प्रति कोई आकर्षण नहीं होगा। फिर भी इसके द्वारा समूचे राष्ट्रको सम्पन्नतामें फौरन ही अच्छी खासी वृद्धि हो सकती है। प्रति वर्ष प्रत्येक आदमी यदि १) ज्यादा कमाने लगे तो हो सकता है इससे उस आदमीको कुछ सुविधा न हो परन्तु ५,००० आबादीवाले गाँवमें ५,०००) की सालाना आमदनीसे लगान और दूसरे कर अदा किये जा सकते हैं। इस तरह चरखेका अर्थ है राष्ट्रीय जागृति और देशके प्रत्येक व्यक्तिका एक निश्चित राष्ट्रीय रचनात्मक काममें योग। यदि भारत अपने आप प्रयत्न करके कार्य साधनेकी अपनी ऐसी क्षमताका परिचय दे दे तो फिर उसे राजनीतिक स्वराज्यके लिए तैयार मानना चाहिए। राष्ट्रकी ओरसे ऐसे संकल्पके साथ अन्य कोई माँग पेश किये जानेपर कौन उसकी अवहेलना कर सकेगा? मैंने अभीतक चरखे तथा उससे उत्पन्न होनेवाली खादीकी जबरदस्त आर्थिक संभावनाका जिक्र तो किया ही नहीं है। क्योंकि वह स्पष्ट है। भारतकी आर्थिक समृद्धिका असर अप्रत्यक्ष रूपसे उसके राजनीतिक इतिहासकी गतिपर पड़े बिना भी नहीं रहेगा। हम राजनीतिक शब्दका प्रयोग संकुचित अर्थमें करें तो भी। और अंतिम बात यह है कि जब चरखे द्वारा देश अपना कपड़ा तैयार करने योग्य हो जायेगा तो उसके फलस्वरूप लंकाशायर द्वारा भारतका यह आर्थिक शोषण बन्द हो जायेगा। विदेशी कपड़े और लंकाशायरके कपड़ेका भी भारतमें आना बन्द हो जायेगा, तो भारतको हर उपायसे गुलामीके बन्धनमें बांधे रखनेकी इंग्लैंडकी व्याकुलता भी समाप्त हो जायेगी।

हम इसका तो मतलब है सारे राष्ट्रको रुचिमें ही क्रान्ति पैदा कर देना। क्या आप उम्मीद करते हैं कि आपके देशवासी आपके अनुरोधपर विदेशी कपड़ेका इस्तेमाल छोड़ देंगे?

जरूर। क्योंकि मैं देशसे बहुत छोटीसी चीज माँग रहा हूँ। लाखों लोगोंको इस बातका ध्यान भी नहीं है कि वे कौन-सा कपड़ा पहनते हैं, सिर्फ दाम कम होना