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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

चाहिए। केवल मध्यम श्रेणीके लोगोंकी ही रुचि बदलनेकी जरूरत है। मैं नहीं मानता कि उनके लिए विदेशी कपड़ेके स्थानपर खादीको अंगीकार करना असम्भव है। फिर यह बात भी याद रखनी चाहिए कि आजकल खादी बहुतसे लोगोंकी रुचिके अनुकूल बनने लगी है और दिन-प्रतिदिन खादी बढ़िया होती जा रही है। इसलिए मेरी राय है कि यदि कोई भी रचनात्मक काम सफल हो सकता है तो वह यही खादीका कार्यक्रम है।

'स्वराज्य' से आपका क्या अभिप्राय है और उसकी क्या कोई मर्यादाएँ हैं, यदि हैं तो कौन-सी?

स्वराज्यसे मेरा अभिप्राय है जनताकी इच्छाके अनुसार भारतका वह शासन जिसका निश्चय देशके ज्यादासे-ज्यादा बालिग लोग मत देकर करेंगे, चाहे वे स्त्री हों या पुरुष, इसी देशके हों या इस देशमें आकर बस गये हों। वे लोग ऐसे हों जिन्होंने अपने शारीरिक श्रमके रूपमें राज्यकी कुछ सेवा की हो और जिन्होंने मतदाताओंकी सूचीमें अपना नाम लिखवा लिया हो। इस सरकारका ब्रिटिश राज्यसे सम्बन्ध रह सकता है किन्तु पूर्णतया सम्मानयुक्त और बराबरीकी शर्तोंपर। मुझे तो अभीतक इस बातकी उम्मीद है कि मौजूदा गुलामीकी जगह हमारा सम्बन्ध बराबरीके हिस्सेदार या सहयोगीका हो सकता है। पर अगर जरूरत आ पड़े अर्थात् यदि इस सम्बन्धके कारण भारतवर्षकी सर्वांगीण उन्नतिमें रुकावट पड़ती हो तो मैं पूर्ण सम्बन्ध-विच्छेदका समर्थन करने या उसके लिए स्वयं प्रयत्न करने में जरा भी नहीं हिचकूँगा।

आपने किस हदतक स्वराज्य दलके कार्यक्रम या कार्य-पद्धतिको कुबूल किया है?

मैं खुद स्वराज्य दलके कार्यक्रम अथवा उसकी कार्यप्रणालीके प्रति किसी भी प्रकार वचनबद्ध नहीं हूँ। एक कांग्रेसीकी हैसियतसे मैं यह मानता हूँ कि देशपर उसका निश्चय ही प्रभाव है और इसलिए उसे कांग्रेसका प्रतिनिधित्व करनेका हक है। यह हक जो उसे इस समय आपसी समझौतेके द्वारा प्राप्त है, उसे वह अपने दलके पक्षमें प्राप्त होनेवाले मतोंकी संख्याके आधारपर भी प्राप्त कर सकता था।

आपके और उस दलके नेताओंके सम्बन्ध कैसे हैं?

अत्यन्त मैत्रीपूर्ण। हम देशभक्ति और त्याग भावनाका जितना दावा अपने लिये कर सकते हैं उनका उतना ही श्रेय मैं उन्हें भी देता हूँ।

कहा जाता है कि आप श्री दासके सामने झुक गये?

एक अर्थमें यह बात सच है। मैं नहीं चाहता था कि कांग्रेसी आपसमें झगड़ें परन्तु अगर इसका यह मतलब हो कि मैं अपने सिद्धान्तसे रत्ती भर भी पीछे हटा हूँ तो यह सच नहीं है।

साहावाले प्रस्तावके [१]प्रति आपका जो रुख था, क्या वह अब बदल नहीं गया है?

जरा भी नहीं। साहावाले प्रस्तावके समय मैं अपने ही लोगों द्वारा की गई भूलका विरोध कर रहा था। इस समय मैं गलत अनुमानोंके आधारपर किये जानेवाले

 
  1. गोपीनाथ साहासे सम्बन्धित प्रस्ताव; देखिए खण्ड २४, "अग्नि परीक्षा", १९-६-१९२४।