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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मियाँ फजल-ए-हुसैन [१]

अभी मैं जब लाहौर गया था, मेरी मुलाकात मियाँ फजल-ए-हुसैनके साथ हुई थी। एक सज्जन लिखते हैं कि उसकी जो छाप मुझपर पड़ी मैं उसके विषयमें लिखें। मैं यहाँ तदनुसार लिख रहा हूँ। बातचीतका समय आनन्दसे गुजरा। उनका व्यवहार मनोहारी था। उनकी बातचीत औचित्यपूर्ण और तर्कसंगत थी। हिन्दुओंकी तरफसे लगाये गये पक्षपातके आक्षेपका उन्होंने विरोध किया। उन्होंने कहा, "मैं मुसलमानोंके प्रति पूरा न्याय नहीं कर रहा हूँ और थोड़ा बहुत कर भी रहा हूँ वह तत्परताके साथ नहीं। सभी मुझसे आकर मिल सकते हैं और जो भी व्यक्ति इस प्रश्न को बारीकीसे समझना चाहता है उसे मैं अपनी स्थिति समझानेके लिए उत्सुक रहता हूँ।" इससे अधिककी आशा रखनेका किसीको अधिकार नहीं है। मैं यह नहीं जानता कि मियाँ साहबकी नीतिके खिलाफ सचमुच कुछ कहा जा सकता है या नहीं। मैंने इस प्रश्नपर दोनों पहलुओंसे विचार नहीं किया है। जब मैं यह कर लूँगा तब मैं मियाँ साहबके इस दावेपर कि उन्होंने मुसलमानोंके साथ पूरा-पूरा न्याय नहीं किया अपनी राय बड़ी खुशीसे जाहिर करूँगा। तबतक तो मेरे लिए इतना ही कहना काफी है कि मियाँ फजल-ए-हुसैन शान्त, गंभीर, और प्रतिष्ठित सज्जन हैं तथा गलत बातपर अड़नेवाले आदमी नहीं हैं।

हमारी लाचारी

साबरमती आश्रममें चरखों, तकुओं, पूनियों इत्यादिकी जगह-जगहसे माँग आ रही है। यदि हम अच्छी तरह संगठित हो गये होते तो हमारी ऐसी असहाय अवस्था न होती। एक समय था कि हरएक देहाती बढ़ई चरखा बना लेता था। आज तो शहरका बढ़ई भी नहीं जानता कि चरखा क्या है और नमूना देनेपर भी उसे तैयार करनेसे इनकार कर देता है। इसी प्रकार पहले हरएक धुनिया पूनियाँ बनाना जानता था। लेकिन आज तो उसका नाम सुनते ही वे मुँह बनाते हैं, या बड़े पैसे माँगते है। पर हाथ-कताईकी सफलताका आधार हमारी सूझबूझ और हिन्दुस्तानके कारीगरोंका सहयोग है। चरखा और उससे सम्बद्ध चीजोंकी बढ़ती हुई माँगकी पूर्ति कोई भी एक संस्था नहीं कर सकती। सौभाग्यसे अब हालत सुधरती जा रही है, लेकिन उतनी जल्दी नहीं जितनी कि चाहिए। जिन्हें जरूरत है उन्हें आश्रमसे चीजें मँगानेके पहले अपने शहर में या जिलेमें उन्हें बनवा लेनेका पूरा प्रयत्न कर लेना चाहिए। बेशक, उसके लिए अनिश्चित समयतक राह देखनेसे तो आश्रमसे मँगा लेना ही बेहतर है। जहाँतक पूनियोंका सम्बन्ध है मेरा श्री सन्तानम्की रायसे इत्तिफाक है, जिन्होंने अपने उत्तम निबन्धमें दिखाया है कि हरएक कातनेवालेको खुद अपने लिए पूनियाँ बनाना चाहिए। छोटी ताँतपर धुनना इतना सीधा और आसान काम है कि किसीको विश्वास ही नहीं होगा। कताईकी अपेक्षा धुनाई बहुत जल्दी सीखी जा सकती है। अच्छा धुनना आ जानेपर अधिक गतिसे कातने और एकसा

 
  1. एक मुसलमान नेता; वाइसरायकी कार्यकारिणी परिषद्के सदस्य।