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२५. पत्र: कृष्णदासको

दिल्ली
२९ जनवरी, १९२५

प्रिय कृष्णदास,[१]

संलग्न पत्र प्यारेलालके [२] लिए है। आशा है तुम मेरे लिए चिन्तित नहीं होओगे। मेरी जितनी सार-संभाल जरूरी है सो सब की जा रही है। महादेवपर कामका भार ज्यादा नहीं है। दीनदयाल मेरे पास फिर आ गया है। उसने मेरी व्यक्तिगत सेवाका भार अपने ऊपर ले लिया है और खुद महादेवको प्रायः सारा समय व्यक्तिगत पत्र-व्यवहारमें [३] लगानेके लिए मुक्त कर दिया है। हिन्दू-मुस्लिम समस्याको हल करनेके लिए निजी तौरपर बातचीत चल रही है। नतीजेके बारेमें अभी कुछ कहना बहुत कठिन है। हम यहाँ कमसे-कम ३१ तारीखतक तो है ही। आशा है तुम दिन-प्रतिदिन शक्ति लाभ कर रहे हो। यहाँ बहुत ठंड है इसलिए तुम्हारे यहाँ न होनेकी मुझे खुशी है। श्री एन्ड्रयूज यहीं हैं और अभी दो दिन रहेंगे। कीकीबहनसे कहें कि मैं इस बातसे खुश हूँ कि वह आश्रममें नियमित रूपसे सिलाई सिखा रही है। इससे उसका ध्यान बँटेगा और यदि वह शक्तिसे अधिक काम न करेगी तो इससे उसको लाभ होगा।

तुम्हारा,
बापू

अंग्रेजी पत्र (जी० एन० ५५९८) की फोटो-नकलसे।

२६. तार: डा० प्राणजीवन मेहताको

३१ जनवरी, १९२५

डा० मेहता
गोल्डगॉड
रंगून

आठ मार्च मेरा मौन-दिवस होगा। मैं उस सप्ताह काठियावाड़में रहूँगा। क्या २६ फरवरी ठीक रहेगी? २२ फरवरीतक लगभग अनुपस्थित रहूँगा।

गांधी

अंग्रेजी मसविदे (एस० एन० २४५६)से।

 
  1. गांधीजीके सचिव; सेवन मंस विद महात्मा गांधीके लेखक।
  2. प्यारेलाल नैयर।
  3. साधन-सूत्रमें 'व्यक्तिगत सेवा' है।