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२७. एक अनर्थ

एक सज्जन टांगानीकासे लिखते हैं: [१]

इस वर्णनके बिलकुल सच होनेकी सम्भावना है। पुर्तगाली राज्यमें, अर्थात् डेलागोआ बेमें, ऐसा मैंने स्वयं देखा है। वहाँ मुसलमानोंने अपने बच्चोंके लिए एक यतीमखाना खोल रखा है। हिन्दू अपनी सन्ततिको मुसलमानोंके हाथ सौंप देते हैं और फिर इनका लालन-पालन मुसलमानोंकी तरह होता है। एक रास्ता तो यह है; किन्तु मैं इसे पसन्द नहीं कर सकता। मेरी दृष्टिमें दोनों निन्दनीय है। पहले तो ऐसे सम्बन्धको शादी मानना ही गलत है। मैं इसे महज विषय-लालसाकी तृप्ति कहता हूँ। विदेशमें बहुतेरे नीति-बन्धन शिथिल हो जाते हैं; क्योंकि वहाँ लोक-लाज नहीं रहती। किन्तु हिन्दुओं और मुसलमानोंके दोषोंमें थोड़ा अन्तर तो है ही। मुसलमान ऐसे विषय-भोगसे उत्पन्न सन्ततिका पालन करते है और उनकी अपने धर्ममें परवरिश करते हैं। यदि मुसलमानों द्वारा दी जानेवाली सुविधा न हो तो हिन्दुओंकी सन्तति भूखों मर जायेगी। यह सन्तति केवल विषय-भोगके परिणामस्वरूप है। इससे हिन्दूपिताको तो उसके धर्मकी कोई चिन्ता ही नहीं होती। मेरी दृष्टिमें तो ऐसा विषयान्ध पूरुष धर्मका त्याग कर ही चुका होता है। नीति और सदाचारके नियमोंका बिलकुल पालन न करनेवालेको धार्मिक मानना मेरे लिए तो मुश्किल बात है। अमुक धर्ममें जन्म पानेवालेको, संख्याकी खातिर भले ही उस धर्मका अनुयायी मान लें, पर सच पूछिए तो वह धर्मच्युत ही है। आचरणसे भिन्न ऐसी कोई वस्तु नहीं है जिसे धर्म कह सकें। वह वेद-धर्मी नहीं जो गायत्री जपता हो या 'वेद' पढ़ता हो; बल्कि वेद-धर्मी वह है जो वेदवाक्यके अनुसार व्यवहार करता है। कितने ही ईसाई वेदादिका बहुत गहरा अध्ययन कर लेते हैं किन्तु इससे वे वेद-धर्मी नहीं हो जाते। और न वही शख्स वेद-धर्मी है जो ढोंग या वहमके वशीभूत होकर गायत्री आदिका पाठ करता है। उसका उस धर्मके अनुयायी होनेका दावा उसी अवस्थामें मान्य किया जा सकता है जब उसे उस धर्मके आदेशोंका बोध हो और वह यथाशक्ति उनका पालन करता हो। इस दृष्टिसे कह सकते हैं कि टांगानीकाके हिन्दुओंने हिन्दु धर्मको छोड़ दिया है।

यह तो एक स्वतंत्र बात हुई। व्यवहारमें ऐसे हिन्दू या मुसलमान पिता हिन्दू या मुसलमान ही माने जायेंगे। इसलिए हमें व्यवहार-दृष्टिसे इसका कुछ निराकरण करना चाहिए। हिन्दू-पिताको चाहिए कि वह ऐसे सम्बन्धको विवाहका रूप दे दे और बच्चोंका प्रेमपूर्वक लालन-पालन करे तथा उनके लिए पढ़ाने आदिकी तमाम सुविधाओंकी व्यवस्था करे। यह उपाय तो हुआ उन बच्चोंके लिए जो उत्पन्न हो चुके हैं। भविष्यके

 
  1. पत्र यहाँ उद्धत नहीं किया गया है। इसमें पत्र-लेखकने टांगानीकाके हिन्दओं द्वारा हब्शी स्त्रियोंके साथ छिपकर किये गये विवाहों और बादमें छोड़ दी गई इन अभागी औरतोंके बच्चोंकी दयनीय दशाका वर्णन किया था।