पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 26.pdf/८८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

२८. टिप्पणियाँ

अनुकरणीय

पालितानाके एक भाईने मुझे पत्र लिखा है। मैं उसका एक आवश्यक अंश यहाँ देता हूँ: [१]

यदि अन्य कर्मचारी भी ऐसा ही करें तो कितना बड़ा सुधार किया जा सकता है। इसमें राजा और प्रजा दोनोंकी सेवा आ जाती है और साथ ही अपना लाभ भी होता है। ये दम्पती धीरे-धीरे इतना सूत और ऊन स्वयं कातने लगेंगे कि उसके बुने कपड़ेसे उनका काम चल जाये। हम जान चुके हैं कि कालीपरज जातिमें प्रति व्यक्ति कपड़ेका खर्च दस रुपये वार्षिक आता है। उक्त भाईके कुटुम्बमें तो खर्च इससे अधिक ही होना चाहिए। इसलिए वे अधिक बचा लेंगे और साथ-ही-साथ एक हुनर भी सीख लेंगे। वे गरीबकी असीस लेंगे और रुई और ऊनकी किस्में जान लेंगे और उनमें सुधार कैसे किया जाये यह भी समझ जायेंगे। इस समय काठियावाड़में सूत कातने आदिकी प्रवृत्ति अच्छी चल रही है। ऐसे समय मैं चाहता हूँ कि छोटे और बड़े सभी राज्य अधिकारी, जिन्हें लोगोंसे बहुत काम रहता है, उक्त भाईकी तरह लोगोंको चरखा चलानेकी शिक्षा दें। यह भाई ऐसा चरखा चाहता है जो यात्रामें घोड़ेपर लाया और ले जाया जा सके। ऐसी इच्छा दूसरोंकी भी होनी सम्भव है। किन्तु ठीक उपाय तो यही है कि अधिकारी हर गाँवमें चरखा रखें। काठियावाड़में अथवा अन्यत्र अब ऐसे गाँव नहीं बचे होंगे जिनमें चरखा बिलकुल मिले ही नहीं। किन्तु यदि कहीं न भी पहुँचा हो तो वहाँ उसे पहुँचा दिया जाना चाहिए। तब अधिकारीगण लोगोंसे चरखा माँगकर सूत कात ले सकते हैं। यदि इस प्रवृत्तिको सभी लोग अपना लें तो हर गाँवकी चौपालमें दो या तीन चरखे रखे जा सकते हैं जिनका उपयोग गाँवकी गरीब-अमीर प्रजा और जब गाँवमें अधिकारी आयें तब वे भी करें। किन्तु जबतक ऐसा सम्भव न हो तबतक ऐसा छोटा चरखा, जो घोड़े पर भी लाया और ले जाया जा सके, रखनेका विचार सुन्दर ही है।

खादी-भण्डार

गुजरात प्रान्तीय कांग्रेस कमेटी जिस खादी भण्डारको चलाती है उसे बन्द करनेके विरुद्ध मेरे पास प्रायः पत्र आते रहते हैं। ऐसा एक पत्र इस समय मेरे सम्मुख रखा है। इससे पता चलता है कि इस सम्बन्धमें लोगोंमें कुछ भ्रम है। प्रान्तीय कांग्रेस खादी भण्डार न चलाये, यह सलाह मैंने नहीं दी है। किन्तु मेरी सलाह यह

 
  1. यहाँ नहीं दिया गया है। पत्रका प्रेषक पालिताना राज्यका एक कर्मचारी था। उसने लिखा था कि मैं अपना बचा हुआ समय रुई और ऊन कातनेमें लगाता हूँ और राज्यके अधिकारी मेरे कार्यपर आपत्ति करना तो दूर, मुझे प्रोत्साहन देते है।