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झुक गई। सिर्फ लॉर्ड हार्डिंग [१] इसमें अपवाद रहे। उन्होंने द० आफ्रिकाकी सरकारकी बात नहीं मानी और द० आफ्रिकावासी भारतीयोंका पक्ष लिया। इसके कारण थे। भारतवासी एक सीधा संघर्ष शुरू कर चुके थे। तरीका नया था। उन्होंने प्रतिकार और कष्टसहनकी अपनी क्षमताको सिद्ध कर दिखाया था। तिसपर भी वे पूर्णतया और प्रत्यक्ष रूपसे अहिंसात्मक बने रहे। पर इस समय द० आफ्रिकाके हिन्दुस्तानी नेता-विहीन हैं। सोराबजी,[२] काछलिया,[३] पी० के० नायडू और अब पारसी रुस्तमजीकी मृत्यु हो जानेके कारण उनकी समझमें नहीं आ रहा है कि क्या करना चाहिए और क्या किया जा सकता है। अहिंसात्मक संघर्षके लिए तो काफी गुंजाइश है, परन्तु इसके लिए खूब विचार करने और विचारके अनुसार डट कर कार्य करनेकी आवश्यकता है। लेकिन फिलहाल यह शायद ही मुमकिन हो। फिर भी मुझे एक-दो नवयुवकोंसे, जो कि द० आफ्रिकामें रहते हैं, बड़ी-बड़ी आशाएँ हैं। इनमें से एक सोराबजी है। सोराबजी बहादुर पारसी रुस्तमजीके बहादुर बेटे हैं। युवक सोराबजी खुद सत्याग्रहके मँजे हुए सिपाही हैं। वे जेल जा चुके हैं। सरोजिनी देवीका [४] जो भारी स्वागत नेटालमें किया गया, उसका प्रबन्ध उन्होंने ही किया था। द० आफ्रिकाके हमारे देशभाइयोंको जान लेना चाहिए कि उन्हें अपनी मुक्तिकी कोशिश खुद ही करनी होगी। ईश्वर भी उन्हींकी मदद करता है जो खुद अपनी मदद करते हैं। अगर उन्होंने अपनी उसी दृढ़ता, जोश और त्यागका परिचय दिया, तो वे देखेंगे कि भारतके लोग और भारत सरकार भी उनकी मदद करेंगे और उनकी तरफसे लड़ेंगे।

वाइसरायके भाषणमें एक अंश ऐसा है जिसके बारेमें कुछ पूर्ति करनेकी आवश्यकता है। वाइसरायने कहा है:

आपके प्रार्थनापत्रमें यह कहा गया है कि नेटाल सरकारने १८९६में जब भारतवासी संसदके मताधिकारसे वंचित रखे गये, तब उन्हें संजीदगीके साथ यह आश्वासन दिया था कि उनका नगरपालिका-मताधिकार सुरक्षित रहेगा। परन्तु आपने इस आश्वासनके स्वरूप या उसके ठीक-ठीक सूत्रका दिग्दर्शन नहीं किया। मेरी सरकार हकीकत जानने के लिए पूछताछ कर रही है।

शिष्ट-मण्डलने जो बात पेश की है, वह मोटे तौरपर ठीक है, पर यह आश्वासन १८९६ में नहीं, शायद १८९४ में दिया गया था। मैं यह याददाश्तसे लिख रहा हूँ। तथ्य इस प्रकार है: १८९४ में नेटाल विधानसभामें मताधिकार छीन लेनेवाला पहला विधेयक पास हुआ था। जिन दिनों वह उस विधानसभामें पेश था हिन्दुस्तानियोंकी तरफसे एक दरख्वास्त [५] दी गई थी जिसमें कहा गया था कि हिन्दुस्तानियोंको भारतमें नगरपालिका-मताधिकार और अप्रत्यक्ष रूपसे राजनीतिक मताधिकार भी प्राप्त है। और उसमें यह अंदेशा भी प्रकट किया गया था कि राजनीतिक मताधिकारका

 
  1. भारतके वाइसराय, १९१०-१६।
  2. सोराबजी शापुरजी अडाजानिया।
  3. अहमद मुहम्मद काछलिया।
  4. सरोजिनी नायडू।
  5. देखिए खण्ड १, पृष्ठ १७९-२८१।