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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लेना चाहते हैं? यदि आप हिंसाके द्वारा स्वराज्य लेना चाहते हों तो आपको कताईका विचार त्याग देना चाहिए किन्तु आप हिंसासे अंग्रेजोंको नहीं जीत सकते, यह मुझे प्रत्यक्ष दीख रहा है। आजके खेलमें सभी मुहरे उनके हाथमें हैं। मेरे हाथमें केवल एक मुहरा है—वह है अहिंसाका। हम उन्हें इस अहिंसाके मुहरेसे ही जीत सकते हैं। यदि आप इस बातको मान लें तो आप यह समझ सकेंगे कि सूत काते बिना तो हमारा काम ही नहीं चलेगा, क्योंकि अहिंसाकी पद्धतिका केन्द्र ही चरखा है। कार्यक्रमकी अन्य बातें इसीके इर्द-गिर्द घूमती हैं।

वातावरण तो बिगड़ा हुआ नहीं है। सरकार उपद्रव चाहती है और उसे उपद्रवप्रिय लोग भी मिल जायेंगे; किन्तु आप तो यही कहेंगे कि चाहे जितनी ही विघ्न-बाधायें आयें, हम तो फिर भी कातते ही रहेंगे। दूसरे लोग कातना छोड़ दें, तब भी आप थोड़े ही कातना छोड़ सकते हैं? दूसरे सब स्वच्छ रहना छोड़ दें, ब्रह्मचर्य का पालन छोड़ दें और अहिंसाका भी त्याग कर दें तो क्या इससे आप भी इनको छोड़ देंगे?

इस प्रकार जो सच्चे कातनेवाले हैं वे समय आनेपर जरूर आगे आ जायेंगे। कांग्रेसके न कातनेवाले ३ करोड़ सदस्य हों तो भी मैं उनसे कोई काम नहीं ले सकूँगा। किन्तु यदि ३०० सच्चे [कातनेवाले] सदस्य होंगे तो मैं उन्हींसे देशको जगा सकूँगा। आप पूछेंगे कि ये लोग समय आनेपर कैसे आगे आ जायेंगे तो मैं इसका उत्तर नहीं दे सकूँगा। मैं तो सिर्फ इतना ही कहूँगा कि ईश्वर उन्हें आगे बढ़ायेगा। ईश्वरपर मेरा इतना विश्वास है कि मैं इसीपर निर्भर होकर बैठा हूँ कि अवसर आनेपर वह सबको जागृत कर देगा। ट्रान्सवालमें क्या हुआ था? आखिर वक्ततक किसीको [संघर्ष में आनेके लिए] नहीं कहा गया था, किन्तु जब कुलियोंने यह देखा कि हम सब जेल पहुँच गये हैं, तब तो वे भी मैदानमें आ गये। हरबतसिंह[१] तो [गिरमिटसे] मुक्त हो चुके थे। उन्हें कर नहीं देना था, किन्तु उनको भी जोश आया। वे भी जेल गये और वहाँ मर गये। खानोंको ही जेल बना दिया गया। मजदूर उन्हीं में कैद कर दिये गये। उन्होंने वहाँ बहुत कष्ट झेले। मुझे इसका जरा भी अनुमान नहीं था कि यह सब होनेवाला है। किन्तु ईश्वरमें श्रद्धाकी बात ऐसी ही है। इसलिए जब लोग पूछते हैं कि मैं सविनय अवज्ञा कब करूँगा तो मैं उनको कोई भी उत्तर नहीं देता। मैं यही कहता हूँ कि ईश्वर उस अवसरको प्रस्तुत करेगा।

मैं अब इस प्रश्नपर आता हूँ कि कांग्रेस में रहने से क्या लाभ? मैं मानता हूँ कि इससे अधिक लाभ नहीं है। किन्तु यदि हम कांग्रेस में न रहें तो स्वराज्यवादियोंको नाहक ही दुःख होगा। इसका अर्थ यही होगा कि हम उनको अपनी सहानुभूति देने के लिए भी तैयार नहीं हैं। इस वर्ष तो सदस्य बनकर जितना काम हो सके उतना करनेके अतिरिक्त कोई अन्य मार्ग ही नहीं है। यदि अगले वर्ष उनको इसकी भी जरूरत न रहेगी तो देखा जायेगा। तब हम कातनेवालोंका संघ बना सकेंगे। किन्तु इस

  1. देखिए खण्ड १२, पृष्ठ ३१४-१५।