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भेंट : एसोसिएटेड प्रेस ऑफ इंडियाके प्रतिनिधिसे

प्रकार वह संघ वर्षके कार्यका परिपक्व फल होगा। यदि आप यह मानते हों कि कांग्रेसमें रहने से कोई लाभ नहीं है तो उसमें हानि भी तो किसी तरहकी नहीं है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १७-५-१९२५
 

३०. भेंट : एसोसिएटेड प्रेस ऑफ इंडिया के प्रतिनिधिसे

९ मई, १९२५

श्री गांधीने स्वीकार किया कि जैसे श्री घोषने[१] बताया है विभिन्न बस्तियोंकी अपनी-अपनी विशिष्टता होती है और काम प्रत्येक बस्ती की विशिष्टताको देखते हुए ही आगे बढ़ाया जाना चाहिए। किन्तु मेरे विचार में चरखा सभी जगहोंपर रचनात्मक कार्यका मुख्य भाग बन सकता है; प्रत्येक बस्तीकी परिस्थिति विशेषको देखकर अन्य बातें इसके साथ जोड़ी जा सकती हैं। प्रत्येक बस्तीमें चरखा घर-घर चलाया जाना चाहिए। इसके बाद श्री घोषने गांधीजीके फरीदपुरके भाषणका[२] उल्लेख किया जिसमें उन्होंने कहा था कि देशको मुक्त करानेके लिए मजबूत हृदयकी जरूरत है, मजबूत भुजाओंकी नहीं। इसपर श्री गांधीजीने कहा कि हम मजबूत हृदयसे स्वराज्य तो ले सकते हैं, लेकिन आन्तरिक शान्ति स्थापित करने तथा देशको बाहरी शत्रुओंसे बचाने के लिए मजबूत भुजाओंको आवश्यकता पड़ेगी। श्री गांधीने कहा कि मैंने इस प्रश्नका उत्तर 'यंग इंडिया'[३] में दिया है और वहाँ मैंने ऐसा नहीं कहा है कि मजबूत भुजाओंको आवश्यकता है ही नहीं। जब हम स्वराज्य प्राप्त कर लेंगे तब तो देशको रक्षाके लिए पुलिस और सेनाको आवश्यकता होगी ही, परन्तु स्वराज्य प्राप्त करनेके लिए सबसे पहले हमारे पास मजबूत हृदय होना चाहिए।

[अंग्रेजीसे]
अमृतबाजार पत्रिका, १२-५-१९२५
  1. कालिमोहन घोषने गांधीजीसे पूछा था कि क्या रचनात्मक कार्यके अंगके रूपमें चरखा अलग-अलग विशेषताएँ रखनेवाले सभी इलाकोंके लिए समान रूपसे उपयुक्त रहेगा यद्यपि सभी बस्तियोंकी अपनी-अपनी विशेषता हुआ करती है; और क्या संगठनात्मक कार्यमें इन विभिन्नताओंका विचार नहीं करना चाहिए।
  2. देखिए "भाषण : बंगाल प्रान्तीय परिषद् में", ३-५-१९२५।
  3. देखिए "फिर वही", ७-५-१९२५।