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३१. अन्त्यज साधु नन्द

नन्दकी यह कथा दक्षिण के साहित्यसे महादेवभाईने साररूपमें ली है। मैं चाहता हूँ इसे सब लोग रुचिपूर्वक पढ़ें। कोई भी यह न माने कि यह कथा कपोल-कल्पना मात्र है। सम्भव है उसमें कुछ अत्युक्ति हो। परन्तु नन्द नामक एक साधुचरित अन्त्यज छः सौ साल पहले दक्षिणमें हुआ है और उसने अपने चरित्र-बलसे मन्दिरोंमें जानेका अधिकार प्राप्त कर लिया था। उसकी पूजा हिन्दुओंमें आज भी अवतारी पुरुषके रूपमें की जाती है। इसपर तो सन्देह किया ही नहीं जा सकता। नन्दकी इस पवित्र कथासे हमें यह शिक्षा मिलती है कि यद्यपि जन्म कर्मका फल है, फिर भी विधाताने हमारे लिए पुरुषार्थ नामको वस्तु भी बनाई है, और नन्द—जैसा अन्त्यज चरित्रके बलसे इसी जन्म में पवित्र हुआ और पवित्र माना गया। ब्राह्मणोंने उसे प्रेमपूर्वक अपनाया। यदि नन्द इसी जन्म में पवित्र हो सका तो हमें यह मानना ही होगा कि यह शक्ति सब लोगों में निहित है। इसलिए हर अन्त्यजको पूजाके लिए मन्दिरोंमें प्रवेश करनेका अधिकार दिया जाना चाहिए।

मैं आशा रखता हूँ कि कोई ऐसा तर्क न करेगा कि नन्दने तो अग्निमें प्रवेश किया था; अन्त्यज लोग ऐसा करके मन्दिरोंमें जाना चाहें तो जायें। अग्नि प्रवेशकी बात काव्यकी अत्युक्ति है। यदि हम इसे सच मान लें तो भी नन्दने स्वेच्छा से ही वैसा किया था। बहुत-से ब्राह्मण नन्दको स्नान-मात्र कराकर मन्दिर में दर्शनार्थ जाने देनेके लिए तैयार थे। इस कथाका सार हमें यही समझना चाहिए कि अन्त्यज अपने पुरुषार्थसे इसी जन्म में पवित्र हो सकते हैं, अर्थात् जिस शर्तपर दूसरे हिन्दू मन्दिरमें जा सकते हैं उसी शर्तपर अन्त्यजोंको भी मन्दिरमें जानेकी छूट दी जानी चाहिए। मैंने इतना तो कहा उच्च वर्णी कहे जानेवाले हिन्दुओंके लिए।

अन्त्यजोंको तो नन्दकी कथा प्रोत्साहन देनेवाली और पावन करनेवाली है ही। मैं चाहता हूँ कि इसका पाठ हर अन्त्यजके घरमें किया जाये। परन्तु वें केवल इसका पाठ करके ही सन्तुष्ट न हो जायें। जो कुछ नन्दने किया है वह प्रत्येक अन्त्यजको करना चाहिए। मैं चाहता हूँ कि सभी अन्त्यजोंमें नन्दकी-सी पवित्रता दिखाई दे और उसका धीरज, उसकी क्षमा, उसका सत्य और उसकी दृढ़ता भी आये। नन्द सत्याग्रहकी मूर्ति था। नन्दने नास्तिकोंको आस्तिक बनाया था। ईश्वर करे, प्रत्येक अन्त्यज नन्दका आख्यान पढ़कर अपने दोषोंको दूर करनेके लिए उत्सुक हो और उसमें समर्थ हो।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १०–५–१९२५