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३२. पत्र : मगनलाल गांधीको

रविवार
वैशाख बदी २ [१० मई, १९२५][१]]

चि॰ मगनलाल,

पुनयाका पत्र तुमने वापस माँगा था; वह इसके साथ है। तुम देखोगे कि मैंने उसका उपयोग 'यंग इंडिया' और 'नवजीवन'में कर लिया है।

मैं चि॰ रुखीके[२] सम्बन्ध में तुमको लिख ही चुका हूँ। यहाँ खादी कार्यका मुझे अच्छा अनुभव हो रहा है। इनका कुछ काम हमारे कामसे अच्छा है। हमारा कताई और पिंजाईका काम बहुत स्वच्छतासे और नियमपूर्वक चलता है न? मेरा स्वास्थ्य अभीतक तो बहुत अच्छा रहा है। भाई रमणीकलाल आ गये हों तो[३] कहना कि चरित्रविजयजीका[४] पत्र आया है। उन्होंने तो हर चीजसे इनकार किया है। वे जितने प्रमाण.. .और. ..के विषयमें इकट्ठे कर सकें, करें। मैं इन दोनों बातोंको भूला नहीं हूँ और भूलना चाहता भी नहीं।. . .के सम्बन्धमें तो तुम जानते ही हो? उनपर पैसा खाने और व्यभिचार करनेके आरोप हैं। जिसने मुझसे यह बात कही है वह इन आरोपों के बारेमें दृढ़ है। यदि कोई बात तुमको या छगनलालको मालूम हुई हो तो मुझे सूचित करना।

बापूके आशीर्वाद

[पुनश्च : ]

बासे कहना कि मैं हरिलालसे मिला था, मैंने उससे तीन घंटे बातें की। हरि-लालने खास तौरसे कहा है कि वा कलकत्ता न आये। वह इस समय अपने किसी मित्र के साथ रहता है।

गुजराती पत्र (सी॰ डब्ल्यू॰ ६२०६) से।
सौजन्य : राधाबहन चौधरी
  1. विषय-वस्तुसे मालूम होता है कि गांधीजीने यह पत्र १९२५ में बंगालके दौरेके दिनोंमें लिखा होगा।
  2. मगनलालकी पुत्री।
  3. रमणीकलाल मोदी; साबरमती आश्रमके सदस्य ।
  4. सोनगढ़ (सौराष्ट्र) में खादी प्रचारके लिए छात्रों और अन्य लोगोंको प्रशिक्षित करनेके उद्देश्यसे खोले गये महावीर रत्न आश्रमके संस्थापक।