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३३. भाषण : पूरनबाजारके व्यापारी संघमें
१० मई, १९२५
 

अभिनन्दन-पत्रका उत्तर देते हुए, गांधीजीने शुरूमें ही कहा कि मुझे अत्यन्त दुःख है कि मैं अली भाइयों में से किसी एकको भी अपने साथ नहीं ला सका। केवल मेरे गुणगान करनेसे कुछ नहीं होगा। मैं तो बस यही चाहता हूँ कि हिन्दुओं और मुसलमानोंके बीच पूर्ण रूपसे एकता स्थापित हो, अस्पृश्यता दूर हो। मैं मानता हूँ कि बंगालमें वैसी अस्पृश्यता नहीं, जैसी कि दक्षिण भारतमें है। किन्तु मैने नामशूद्रोंसे सुना है कि उनके साथ अन्यायपूर्ण व्यवहार होता है। हिन्दुस्तानकी गरीबी दूर करने के लिए आप सभीको चरखा अपनाना चाहिए और खद्दर पहनना चाहिए। मैं देशको सभी बुराइयों से मुक्त करना चाहता हूँ; इसमें मद्यपानकी बुराई भी शामिल है। मेरा यह दृढ़ विश्वास है कि जबतक आप मेरे द्वारा तैयार किये गये त्रिसूत्री कार्यक्रम- पर अमल नहीं करेंगे तबतक आपको स्वराज्य नहीं मिलनेका।

[अंग्रेजीसे]

हिन्दू, ११-५-१९२५


३४. भाषण : चाँदपुरमें
१० मई, १९२५
 

महात्माजीने सबसे पहले स्वागत-समिति तथा नगरपालिकाको मानपत्रके लिए धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि यह मेरे प्रति आपका प्रेम ही है जिसके कारण मानपत्रों में आपने मेरे गुणोंका उल्लेख किया है। मैं आपका प्रेम स्वीकार करता हूँ और उन गुणोंको प्राप्त करने के लिए ईश्वरसे प्रार्थना करूंगा। अतएव मैं इस प्रशंसा- को आपके प्रेमके प्रतीकके रूपमें स्वीकार करता हूँ।

स्वागत-समिति द्वारा दिये गये मानपत्रमें कार्यके परिमाणके सम्बन्धमें व्यक्त की गई निराशाका उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि यदि मनुष्य ईमानदारी, त्याग और विनम्रताके साथ काममें जुटा रहे तो निराश होनेको कोई बात नहीं।

परमात्माका वचन है कि फलकी अपेक्षा किये बिना हमें निरन्तर अपना कर्तव्य करते रहना चाहिए।

१. यह भाषण जनता तथा नगरपालिकाको ओरसे दिये गये मानपत्रके उत्तरमें दिया गया था। गांधीजीने उत्तर हिन्दीमें दिया था। मूल भाषण उपलब्ध नहीं है।