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भाषण : चाँदपुरमें

महात्माजीने उक्त कथनपर जोर देते हुए कहा कि हमारा धर्म हमें अपने कार्यमें रत रहनको शिक्षा देता है। आपके कार्यमें मन्द प्रगति होनेका क्या कारण है सो मैं समझता हूँ। यह इसलिए हुआ कि देश वास्तविक कर्मभूमिमें अभी हाल ही में उतरा है।

अबतक तो हमने कामके बारेमें केवल बातें की हैं, हमने गम्भीरतापूर्वक काम करना शुरू नहीं किया था। अब हम बातोंको दुनियासे कामको दुनियामें आ रहे हैं। चूँकि हम कर्मक्षेत्रमें पदार्पण कर चुके हैं, इसलिए हमें कर्मकी साधनाके जरिये आध्यात्मिक जीवनकी ओर बढ़ना है। हमने १० वर्ष पूर्व, उसी समय अपनी स्थितिको समझ लिया था जब भाषण, प्रशंसा और ताली बजाना ही राजनीतिके क्षेत्रमें एक फैशन बना हुआ था। तब हमारे पास हजारों कार्यकर्ता थे। इसमें आश्चर्यको कोई बात नहीं कि आज चरखेपर काम करनेवाले कार्यकर्ताओंकी संख्या उससे कम है।

महात्माजीने कहा कि कांग्रेसके सदस्योंमें असाधारण रूपसे कमी आ जाने और चरखोंको संख्यामें वृद्धि न होने के कारण मैं जरा भी निराश नहीं हूँ। मैऺ अनुभव करता हूँ कि इससे मुझे अधिक निश्चयके साथ काम करनेका बल मिला है। इसी कारण मैं अपने भाइयों और बहनोंसे कहता हूँ कि वे अपने कार्यमें विश्वास करें। मैं कांग्रेसके ऐसे एक करोड़ सदस्यों की अपेक्षा जो सिर्फ चार आने चन्दा दें और कुछ भी न करें, उन तीस सदस्यों को अधिक मूल्यवान निधि समअँगा जो कताई-सदस्यता, हिन्दू-मुस्लिम एकता तथा अस्पृश्यता सम्बन्धी-शर्तोंको पूरा करते हों। पाँच या सात खरे और सच्चे सिक्के एक करोड़ खोटे सिक्कोंसे अधिक मूल्यवान होते हैं। खोटे सिक्कोंको तो नदीमें फेंक देना चाहिए, त्याग देना चाहिए।

इसलिए कांग्रेसका कताईकी शर्तवाला मताधिकार सच्चे कार्यकर्ता खोज निकालनेकी एक कसौटी है। इससे नकली मालके ढूँढ़ निकालनेमें सहायता मिलेगी। यदि कोई व्यक्ति यह कहे कि उसे चरखेमें विश्वास नहीं है तो उसे चरखेको छोड़ देना चाहिए। किन्तु यदि आपको चरखेकी उपयोगितामें विश्वास है तो आपको इसलिए निराश नहीं होना चाहिए कि दूसरे लोग इसे नहीं अपनाते। आपको अपने कर्तव्यके प्रति जागरूक रहते हुए अपना काम करते रहना चाहिए।

महात्माजीने जोर देकर कहा कि यदि देशका एक व्यक्ति भी चरखेके पक्षमें न रहे तो भी मैं अकेला अपने घरमें रहकर प्रतिदिन ८ घंटे चुपचाप चरखा चलाता रहूँगा।

स्वागत-समितिके मानपत्रमें बताया गया था कि अन्नके अभावके कारण लोगोंकी कैसी दयनीय दशा हो गई है। इसका पुनः उल्लेख करके गांधीजीने कहा कि मैंने सुना है कि इस प्रदेशमें "वॉटर हायसिन्थ" नामके पौधे फैले हुए हैं। ये हर साल फसलोंको बहुत नुकसान पहुँचाते हैं।

मेरा खयाल ऐसा है कि हम अपने आलस्यके कारण ही दुःख भोग रहे हैं और इसी कारण बिना किसी रोक-थामके 'वाटर हायसिन्थ' भी बढ़ते जा रहे हैं।